चंद्र इंद्र नभ देव, सदा शुभ पूज्य हमारे।
हम पर रहो प्रसन्न, रखो आशीष तुम्हारे।
लेकिन मन के भाव, लेखनी सच्चे लिखती।
देव दनुज नर सत्य, कमी बेशी जो दिखती।
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क्षमा सहित द्वय देव, पुरानी बात सुनाऊँ।
लिखता रोला छंद, भाव कुछ नये बताऊँ।
शर्मा बाबू लाल, सुनी वह तुम्हे सुनाता।
बीत गया युग काल, याद फिर से आजाता।
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ऋषि गौतम की पत्नि, अहल्या सुन्दर नारी।
मोहित होकर इन्द्र, स्वयं की नियति बिगारी।
आये गौतम वास, चन्द्र को संगी लेकर।
हुए कलंकित दोउ, सती को धोखा देकर।
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भोले मातुल चंद्र, इन्द्र के वश में आकर।
मुर्गा बन दी बाँग, प्रभाती, आश्रम जाकर।
अपराधी थे इन्द्र, चंद्र तुम बने सहायक।
ढोते भार कलंक, मीत जब हो नालायक।
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ऋषि गौतम दे शाप, संत थे वे तपकारी।
बने कलंकित चन्द्र, इंद्र सहस्त्र भगधारी।
पाहन हो अभिशप्त,अहल्या विधि स्वीकारी।
त्रेता युग जब राम, करेंगे भव अविकारी।
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हुये चंद्र बदनाम, जगत तुम नारि विरोधी।
तब भी भारत भूमि, हमारी हुई न क्रोधी।
धरा भारती धीर, तुम्हे भाई सम माना।
मातुल कहते लोग, भारती रिश्ता जाना।
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कैलाशी परमेश, शीश पर तुमको धारे।
कृष्ण चंद्र भगवान, जन्म ले वंश तुम्हारे।
इतना दें सम्मान, तुम्हे हम भारत वासी।
क्षमा किये अपराध, तुम्हारे चंद्र सियासी।
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चंद्र तुम्हारा मित्र, इंद्र जब भी भरमाया।
नल राजा अरु कृष्ण, सभी से था शर्माया।
हम भारत के पूत, धरा मरु में रह लेते।
सुनें इंद्र अरु चंद्र, कष्ट सुख सम सह लेते।
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होगी अब भी याद, तुम्हे जयंत की घटना।
सींक बाण की मार, भटकता चाहा बचना।
मिला नहीं वह देव, कहे शचि पुत्र बचालूँ।
शरण गये सिय राम, तभी दी क्षमा कृपालू।
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रहे इन्द्र को याद, पार्थ के गुण उपकारी।
तजी अपसरा स्वर्ग, देख ऐसे व्रतधारी।
कैसे भी हो स्वर्ग, नहुष ने राज चलाया।
दैव शाप सम्मान्य,देख शचि धर्म निभाया।
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वरना हम तो सिंह, नहुष के देश निवासी।
करें स्वर्ग प्रस्थान, शीघ्र बन चंदा वासी।
दसरथ अरु मुचुकंद, बने देवों के रक्षक।
लाते तुम्हे उतार, अहल्या के सत भक्षक।
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डाल इन्द्र को कैद, सजा देते, तब भारी।
बच्चा बच्चा आज, सुनाता, तुमको गारी।
पर मर्यादित राम, अहल्या जन उद्धारी।
इन्द्र चंद्र अपराध, क्षमा दे दी शुभकारी।
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सृष्टि संचलन हेतु,बचा अस्तित्व तुम्हारा।
मान धरा ने भ्रात, तुम्हारा मान सँवारा।
इसीलिए सम्मान, करें हम मातुल कहते।
धरामात परिवृत्त,भ्रमणरत जो तुम रहते।
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सृष्टि संतुलन हेतु, जरूरत जान तुम्हारी।
देते तुमको मान, शंभू अरु कृष्ण मुरारी।
पावन प्रेम प्रकाश, धरा को तुम जो देते।
उसे चंद्रिका मान, सदा अमृत सम लेते।
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चाल तुम्हारी देख, यहाँ त्यौहार मनाते।
करते व्रत उपवास, नये पंचांग बनाते।
धन्य भारती नारि, तुम्हे ईश्वर सम माने।
करती पूजन दर्श, सदा सौभाग्य सजाने।
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पूनम बारह चौथ, यहाँ नारी, व्रत धरती।
भोजन से जो पूर्व, दर्श चंदा का करती।
तुम्हे कलंकी मान, चौथ भादों नर तजते।
शेष दिनों में चंद्र, तुम्हें ईश्वर सा भजते।
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पर मत भूलो हे चंद्र, दिया सम्मान हमारा।
हमें ज्ञात कर्तव्य, तुम्हे दायित्व तुम्हारा।
जन्म नहुष के देश, स्वर्ग में तो है आना।
सतत चंद्र अभियान,नये हैं स्वप्न सजाना।
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मिल कर होगी बात, इंद्र से, मातुल तुमसे।
होगा, गर्व गुमान, आपको मिल के हमसे।
पिछले भातइ, दंड, चुके मामा, से सारा।
स्वर्ग लोक मय चंद्र, प्रथम हो राज हमारा।
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आप निभाओ नेह, निभाएँ हम भी नाता।
कभी दिखाओ आँख,हमें टकराना आता।
भूल गये क्या चंद्र, दक्ष का शाप सहारा।
रवि को ले मुख दाब,बली हनुमान हमारा।
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हम भारत के लोग, निभावें नाते वादे।
रखते स्वअभिमान, नेक अरु अटल इरादे।
चंद्र इंद्र का मान, रखें हम भी मनभावन।
नेह मेह की प्रीत, आप भी रखना पावन।
नाम–बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः