1. घर से जातीं बेटियाँ ओ मेरी लाड़लियों! सुनो बेटियों! ये पथ तुम्हारी याद दिला रहा है। तुम आती हो, बहारें छा जाती हैं। जब जाती हो, पतझड़ चला आता है। सूखा बियाबान-सा सन्नाटा, बस, पत्तों की खड़खड़ का एहसास। तुम छोड़ जाती हो कुछ ओस की बूंदें, कुछ यादें, […]
कविता दशक
सॉनेट शाला करूँ अर्पण-समर्पण मैं, जगे अभ्यास की ज्वाला। करूँ छंदों का तर्पण मैं, तृप्त हों हृद-सलिल-शाला। भवानी शारदा माता, रखूँगी एक अभिलाषा। सुमति अल्पज्ञ भी पाता, समर्पण ही सहज भाषा। जगाऊँ नाद मैं ऐसे, जगत गूँजे अलंकारों। सकल ब्रह्मांड में जैसे, शबद हुंकार चौबारों। सुगम-सी काव्यमंजूषा। छंद सॉनेट की […]