भीगी आंखें , भीगी रातें धुंधली यादें, बिसरी बातें बाबूजी के हाथ पली थी आंगन की वो शाख हरी थी अखबारों के संग बैठक में चर्चा करते बाबूजी और कभी हाथों से आंगन सींचा करते बाबूजी गीला आंगन, गीली रातें धुंधली यादें, बिसरी बातें कपड़े धोकर छत के अम्मा चक्कर […]
काव्यभाषा
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