कलयुगी मानव की लालसाएंँ सुरसा की तरह बढ़ रही हैं। निस्वार्थ प्रेम और विनम्र भक्ति की मूर्ति खंड-खंड हो रही है। लालसा की देवी यत्र- तत्र- सर्वत्र प्रतिष्ठित हो रही हैं। प्रपंच /पाखंड की नौका पर सवार सब स्वार्थ की नैया खे रहे हैं। नैतिकता, तप, प्रेम, परहित ,त्याग, संवेदना […]
व्यंग्य
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