बहाने ढूंढते हैं…

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aalok yadav
बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं,
ये आँसू तो मेरे तुम पर गए हैं।

जो तुमने मेरी पलकों में रखॆ थे,
वो सपने मुझको शूलों से गड़े हैं।

न सीता है, न अब है राम कोई,
चरित्र ऎसे कथाओं में मिले हैं।

जो आने के बहाने ढूंढते थे,
वो जाने के बहाने ढूंढते हैं।

हवाएं सावनी जो पढ़ सको तुम,
उन्हीं पे आँसूओं ने ख़त लिखे हैं।

न जाने बात क्या है होने वाली,
परिंदे आज कुछ सहमे हुए हैं।

वो जिनमें खो दिए थे होश हमने,
वही ‘आलोक’ फिर सामाँ हुए हैं।
(शब्दार्थ:सामाँ-सामान)

#आलोक यादव

परिचय : फ़र्रूख़ाबाद(उत्तर प्रदेश)के फतेहगढ़ में रहने वाले आलोक यादव का जन्म ३० जुलाई १९६७ को कायमगंज(फ़र्रूख़ाबाद) में हुआ है। आपने शिक्षा बीएससी और एमबीए प्राप्त की है। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त(कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम एवं रोजगार मंत्रालय,भारत सरकार)के पद पर कार्यरत हैं। उपलब्धियों की बात करें तो ‘डॉ.इकबाल उर्दू अवार्ड-२०१४’,‘डॉ. आसिफ बरेलवी अवार्ड-२०१४’,’दुष्यंत कुमार सम्मान’ -२०१५` और ‘सृजन साहित्य सम्मान’ के अलावा विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ(भागलपुर) द्वारा ‘विद्या वाचस्पति’ की मानद उपाधि भी दी गई है। प्रकाशन में आपके खाते में कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के साथ ही सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग(उ.प्र.)की मासिक पत्रिका में लेख,कविताओं तथा ग़ज़ल आदि का सतत प्रकाशन दर्ज है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों से भी आपकी रचनाओं का प्रसारण हुआ है। अनेक प्रतिष्ठित मंचों से काव्य पाठ किया है तो, कुछ बड़े वेब पोर्टल पर भी रचनाएं प्रकाशित हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में ग़ज़ल संग्रह ‘इज़्तिराब’ का संपादन,हिन्दी ग़ज़ल संग्रह ‘उसी के नाम’ और उर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘उसी के नाम’ भी है। आपका निवास वर्तमान में दिल्ली में वज़ीरपुर में है,जबकि स्थाई पता नगलादीना, फतेहगढ़(फ़र्रूख़ाबाद)है।

matruadmin

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9 thoughts on “बहाने ढूंढते हैं…

  1. Alok has always written ghazals and Hindi poems based on the challenges the society is facing today or on the innermost emotions of a human being . He can identify with people that’s why people see themselves or somebody they live in his creations . It’s a real treat to read his ghazals and poems .

  2. हवायें सावनी नो पढ़ सको तुम
    उन्हीं पे आँसुओं ने ख़त लिखे हैं ।

    हम तो मुरीद हैं आपके भाई जी
    हमेशा की तरह बहुत उम्दा ग़ज़ल हैं
    वाह
    ज़िन्दाबाद

  3. बहुत सुंदर सर,आपको पढ़ना हमेशा ही मन को आनंद से भर देता है

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