हे शैलपुत्री! हे ब्रह्मचारिणी! माँ चंद्रघण्टे ! माँ कुष्मांडा! हे स्कन्दमाता! हे माँ कात्यायनी! हे कालरात्रि माँ! माँ महागौरी! माँ सिद्धिदात्री! माँ, तुम हो दुर्गे। तुम तपस्विनी, तुम विष्णुमाया, तुम भव्या, तुम बहुल प्रिया। चंडमुंड, खड़ग, खप्पर धारिणी, अष्ट भुज कल्याणकारिणी। तुम भवप्रिता, तुम भवमोचिनी, तुम बगलामुखी, तुम दक्ष कन्या। […]
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2 अक्टूबर शास्त्री जयंती विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध बलवान हो जाता है।आध्यात्म और दर्शन के अध्येता प्रारब्ध को सर्वोपरि मानकर नियति के फ़ैसले को अंतिम निर्णय कहते हैं और प्रारब्ध सबकुछ छीनकर भी […]