राष्ट्र-प्रेम का प्रदीप,
सदैव दीप्तिमान हो।
विश्व-ऐक्य-भाव ही,
सर्वथा प्रधान हो।।
कोटिशः नमन तुम्हें,
धीर वीर महान हो।
त्याग शान्ति समृद्धि के,
तुम्हीं तो वितान हो।।
शुष्क हृदय न हो कभी,
प्रेम प्रवाहमान हो।
कर तिरोहित वैरभाव,
अधर मात्र मुस्कान हो।।
है एक प्राण दाता पूज्य,
सर्व-धर्म समान हो।
मनुज हैं, मनुजता हो,
न हिन्दू मुसलमान हो।।
जब मर्म एक ही छिपा,
गीता या कुरान हो।
दिव्य धर्मग्रन्थ पर,
अमिट कर्म-निशान हो।।
यदि गाँठ बाँध लो सभी,
विध्वंस न अपमान हो।
ताेड़ बंध, सीमा पर ,
न ललकारता जवान हो।।
हर हृदय में मातृभूमि-
प्रति गुणगान हो।
सप्त स्वर से अष्ट दिक् में,
गूँजता जयगान हो।।
#शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’