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तुम्हें बस ख़बर ही नहीं है
वर्ना गुनाह यहाँ रोज़ होता है
इस हुश्न की चारागरी में तो
इश्क़ तबाह यहाँ रोज़ होता है
ज़ख़्म सहने की आदत है सो
दुआ फ़ना यहाँ रोज़ होता है
भीड़ में होके भी आज इंसाँ
बेवक़्त तन्हा यहाँ रोज़ होता है
ज़िन्दगियाँ यूँ ही क़त्ल होती हैं
पैदा गवाह यहाँ रोज़ होता है
सलिल सरोजनई दिल्ली
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