सदियों पहले हो के तिरस्कृत, रोयी सीता माता है। नारी की उस दीन दशा को, क्यों जग बार-बार दोहराता है? मिथ्या आरोपों का जब, जगजननी ने न प्रतिकार किया। तभी अधम की बुद्धि के आगे, धर्म ने अत्याचार किया॥ […]
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राष्ट्र-प्रेम का प्रदीप, सदैव दीप्तिमान हो। विश्व-ऐक्य-भाव ही, सर्वथा प्रधान हो।। कोटिशः नमन तुम्हें, धीर वीर महान हो। त्याग शान्ति समृद्धि के, तुम्हीं तो वितान हो।। शुष्क हृदय न हो कभी, प्रेम प्रवाहमान हो। कर तिरोहित वैरभाव, अधर मात्र मुस्कान हो।। है एक प्राण दाता पूज्य, सर्व-धर्म समान हो। मनुज […]