कड़वा सच

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sarlarla
sinh
कई बार लोग सीरत से अधिक सूरत को
महत्व देते हैं,व्यक्तित्व को विशेष रूप से
महत्व देते हैं। अगर किसी के पास दोनों न हो तो,उसे धनाढ्य होना चाहिए, अन्यथा लोग इज्ज़त
नहीं करते हैं।
    ‘अरे लो ये पेपर,इस पर स्टैम्प….अरे ठप्पा लगा लो,ठप्पा-ठप्पा।’ प्रधानाचार्या जी ने ज्वाइनिंग लेटर देते हुए कहा। उनके बोलने का अंदाज ऐसा था,मानो किसी बेहद गंवार से बात कर रही हों।
रीना का चेहरा गुस्से से तमतमा गया
था,पर नई जगह,नए लोग…वह खून का घूँट पीकर अपमान सह गई। वह मन ही मन स्वयं को कोस रही थी कि,उसने अपना तबादला ही आखिर क्यों कराया?आखिर उसे क्या सूझी,जो यहाँ चली आई!
        रीना का तबादला उसके घर के ही नजदीक हो गया था। आज वह बहुत खुश थी,क्योंकि वह बहुत दिन से इस प्रयास में लगी थी,कि उसका तबादला उसके घर के पास हो जाए।
हालांकि,जिस विद्यालय में वह अभी पढ़ा रही थी,वह बहुत अच्छा था। वहाँ के सभी शिक्षक और प्रधानाचार्य सहयोगी एवं अच्छे व्यवहार वाले थे। उसकी गलतियों को भी वे सहज भाव से समझा देते। प्रधानाचार्य बहुत ही सहयोगी इंसान थे। कभी कोई गलती होती,तो उसे भी बड़े ही शांत भाव से समझा देते।
  ‘मैडम,चिन्ता मत करो मैं हूँ न।’ उनकी यही दो पंक्ति न जाने कितना सुकून
पहुँचाती थीं। काम तो फिर भी करना ही होता था,पर एक शान्त दिमाग के साथ वही काम होता था।
रीना काफी दूर से आती थी,उसका कोई साथ भी न था। अगर  किसी का साथ हो तो कैसी भी कठिन राह हो आसान हो  जाती है। अकेले कहीं आना-जाना उतना ही कठिन है। रीना की हमेशा से यही  इच्छा रही थी कि,कोई उसकी ऐसी सहेली होती जो उसके साथ आती-जाती परन्तु उसकी यह इच्छा कभी भी पूरी नहीं हुई। न स्कूल,ना महाविद्यालय और न ही नौकरी करते समय ऐसा हुआ। उसके आने-जाने के रास्ते में एक जगह ऐसी पड़ती थी,जिसे पार करने के
बाद ही उसकी जान में जान आती। वहाँ आए दिन जेबकतरे और गुंडे जैसे लड़के आरटीवी या बस में चढ़ जाते और जबरन किसी का पर्स-किसी का मोबाइल चाकू दिखाकर छीन लिया करते थे। उस क्षेत्र को पार करने के बाद ही लोग चैन की सांस लेते थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि,इस क्षेत्र से लगकर पुलिस थाना भी था। कुछ बदमाश तो पुलिस थाने से पहले उतर जाते तो,कुछ थाने से थोड़ा आगे जाकर उतरते,मानो पुलिस का मखौल उड़ा रहे हों।
        एक बार हम लोग आ रहे थे कि, आरटीवी जैसे ही चौराहे पर रुकी,नीचे से आवाज आई-‘कैमरा-कैमरा।’ नीचे खड़े कुछ लड़के आरटीवी में बैठे लड़कों से कह रहे थे।
मुझे लगा शायद,किसी के घर में शादी होगी या कुछ और होगा और वे लड़के इन लड़कों को जानते होंगे और इसलिए इन लड़कों से वे कैमरा मंगवा रहे हैं। मैं सोच ही रही थी कि,एक लड़का अपनी जेब से एक तेज धारदार चाकू निकाल लेता है और सबसे पीछे की सीट पर बैठे आदमी के सामने तान देता है। वो आदमी बड़ी ही समझदारी से बिना समय गंवाए मोबाइल दे देता है।
‘अरे भाई ये लो मोबाइल,मोबाइल ही चाहिए न।’ वह व्यक्ति बोला।
पर गुंडों को इससे भी सन्तोष न मिला। उन्होंने उसकी जेब में जो कुछ था,सब ले लिया।
ये घटना ठीक पुलिस चौकी से बमुश्किल चार कदम की दूरी पर हो रही थी,पर विरोध का साहस किसी में भी नहीं था।इन सबके कारण ही वह चाहती थी कि, उसका तबादला उसके घर के पास ही हो जाए।
‘रीना तुम गलती कर रही हो’-प्रधानाचार्य जी बोले।
‘यहाँ क्या हुआ,वहाँ तुम परेशान हो जाओगी।’
‘जी,पर क्या करुं,बच्चों की तबियत कभी
खराब होती है,तो यही दूरी बहुत खलती है। मुझे भी जाते हुए बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है।’
हाँ शायद,यह भी सही कह रहे थे। यहाँ की तरह अपनत्व तो शायद न ही मिले। रीना मन ही मन सोच रही थी। आखिर कहते-कहते करीब पन्द्रह दिन बाद वह विद्यालय से मुक्त हुई। रीना सभी से मिलकर अपने नए विद्यालय पहुँचने की तैयारी करने लगी। सारे प्रभार देने के बाद नए विद्यालय की ओर चल पड़ी। रास्तेभर उसे बड़ा ही अजीब लग रहा था। अपने घर के पास पहुँचने की खुशी से अधिक अपने साथ के लोगों को छोड़कर जाना दुख पहुँचा रहा था। वो अब खुश कम और उदास ज्यादा थी।
न जाने क्या-क्या सोचती हुई वह नए विद्यालय की ओर बढ़ चली थी। अजीब-सी उलझन उसके ऊपर हावी हो रही थी।
नए विद्यालय में पहुँचकर वो पहले ज्वाइनिंग के लिए प्रधानाचार्या के कमरे में जाती है। वहां पहुँचकर पहले प्रधानाचार्या को नमस्कार करती है,जिसका जवाब उसे तीसरी बार में मिल सका। उसे बड़ा अजीब-सा लगा। वो काफी देर तक कार्यालय में बैठी रही, अन्ततः थककर पति को घर जाने के लिए कहकर पुनः इन्तजार करने लगती है कि,कब उसकी ज्वाइनिंग कराई जाए। आखिर काफी देर बाद प्रधानाचार्या एक शिक्षिका की ओर देखते हुए बोली,-‘अरे जरा इससे पढ़ाकर देख तो लो,पढ़ाना आता है कि नहीं। जब पढ़ाना आएगा,तभी मैं ज्वाइनिंग कराऊँगी। रीना को ऐसा लगा,मानो वह नई-नई नौकरी करने आई हो। वह गुस्से से खौल उठी,लेकिन अपने ऊपर बहुत ही अंकुश लगाया। आखिर एक प्रधानाचार्या की बात थी,खैर।
‘रीना मैम,आप कक्षा आठवीं-सी में  चली जाइए।’
सुनकर रीना खड़ी हो गई,-जी मैम किधर जाना है।’
‘कमरा नं. आठ है’,दूसरी शिक्षिका ने कहा।
‘अरे ढूँढ लेगी’,बड़े ही अजीब ढंग से प्रधानाचार्या जी बीच में बोल पड़ी।
रीना चुपचाप वहाँ से निकलकर बाहर आ गई,और एक बच्चे से पूछकर कक्षा में चली गई। अन्ततः,अन्तिम कालांश में बुलावा आया। अब तक  के अन्दर उस प्रधानाचार्या के प्रति एक अजीब-सी भावना घर कर गई थी।खैर,ज्वाइनिंग हुई और वह बोलीं,-
 ‘अब ज्वाइनिंग लेटर कल लेना।’
 ‘जी मैम।-रीना बड़ी मुश्किल से बोली।
 रीना घर पहुँचकर बहुत रोई कि,कैसी जगह आ गई, वो भी थोड़ी-सी दूरी के कारण।
वैसे भी अगर रास्ते की परेशानी न होती, तो वह कभी भी तबादला न कराती। खैर, दूसरे दिन जब वह विद्यालय पहुँची तो पहले उसे वे कक्षाएं बता दी गई,जिनको उसे पढ़ाना था। तीसरे कालखंड में बुलावा आया-‘मैडम,आपको बड़ी मैम बुला रहीं हैं।’-एक मैम ने कहा।
अब रीना तुरंत पहुँची,कुछ देर वह खड़ी रही। बड़ी मैम अपनी एक चहेती से बात कर रही थीं,सो इन्तजार करती रही।काफी देर बाद दूसरी शिक्षिका से बोलीं,
-अरे इसका ज्वाइनिंग लेटर दे दो।’
         यानी उन्हें पता था कि,मैं उनके ही बुलाने पर आकर खड़ी हूँ,फिर भी वे आपस की बातें करतीं ही रही। खैर, दूसरी शिक्षिका ने उसे ज्वाइनिंग लेटर थमाते हुए कहा कि,इस पर स्टाम्प लगा लो। नया स्कूल,नए लोग उसे कैसे पता चल जाता कि स्टाम्प कहाँ है। वो उस मैम से जानना चाहती है कि,स्टैम्प कहाँ है। इतने में फिर वो प्रधानाचार्या बोल पड़ी-‘अरे स्टैम्प,ठप्पा ठप्पा।’ यानी वो रीना को अपने आगे निरा गंवार सिद्ध कर रही थी,जिसे स्टैम्प भी नहीं मालूम, जबकि रीना उससे कहीं ज्यादा पढ़ी थी और पढ़ा भी कई साल से रही थी।
नेहा को एक तगड़ा झटका-सा लगा,
ये दुनिया कैसी है। बड़े ही विचित्र लोगों से भी सामना हो जाता है। रीना के दिमाग में बहुत समय तक ‘ठप्पा,ठप्पा’ शब्द घूमता ही रहा।
                                                                       #डॉ.सरला सिंह

परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।