`भारत स्वच्छ अभियान` अभी तक कोई ज्यादा असर नहीं दिखा पाया है,पर आने वाले समय में निश्चित ही ये बहुत सार्थक सिद्ध होगा। दरअसल कोई कार्य मात्र औपचारिकता से सम्पन्न नहीं हो सकटा है। पूरी की पूरी मानसिकता बदलनी है,क्योंकि अज्ञानता, लापरवाही और आदतन ही व्यक्ति स्वच्छता की तरफ ध्यान नहीं देता है। प्रयास यदि निष्ठा और ईमानदारी से किए जाएंगे तो जरूर सफलता मिलेगी। इसी प्रयास से केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ शहर का पुरस्कार इंदौर(मध्यप्रदेश) को दिया गया है। यह सर्वेक्षण शत-प्रतिशत सही है। मैंने अपनी आंखों से देखा है। वहां बच्चा,बूढ़ा,जवान, गरीब,अमीर,अनपढ़ हो या पढ़ा- लिखा,रिक्शावाला, ठेलेवाला, फेरीवाला,सभी स्वच्छता को लेकर इतने जागरूक हैं कि,छोटा-सा कागज़ का टुकड़ा भी सड़क पर या इधर-उधर नहीं दिखता है। शहर को स्वच्छ रखने के लिए हर व्यक्ति की मानसिकता बदल चुकी है। यह काम जादू की छड़ी से नहीं हुआ है,बल्कि स्थानीय स्तर पर बहुत से कार्यक्रम,कार्यशालाएं,संगोष्ठियां और अभियान चलाए गए थे,जिसका परिणाम आज सामने है। मैं इस उदाहरण से यह कहना चाहती हूं कि,हमारे अभियान मात्र औपचारिक न हों,सिर्फ वाहवाही लूटने,चित्र खिंचवाने और समाचार पत्रों में प्रकाशित हो जाने तक ही न हों,बल्कि उत्साहित होकर इस अभियान में हर इंसान की हिस्सेदारी हो। विद्यालयों में,कालेजों में शिक्षा दी जाए,घर में बड़े लोग ध्यान रखें,सफाई और कचरा निस्तारण का उचित प्रबंध करेंl इसमें घर के बच्चे भी शामिल होंगे और सीखेंगे।
भारत के ज्यादातर शहरों में सड़क के किनारे पर,बाजारों में, सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी दिखना बहुत आम है। अब सरकार कितने भी कार्यक्रम चलाए,नेता कितने भी भाषण सुनाएं या कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें करें,यदि व्यवहार में नहीं लाया जाए तो कोई औचित्य नहीं है। मेरा अनुरोध है कि,जितने भी अभियान चलाए जाएं,उनकी सार्थकता तभी सिद्ध होगी कि,आम आदमी उसमें सहयोग करें। आइए,हम प्रण लें देश को सुंदर और स्वच्छ रखने काl भारतवर्ष को दुनिया में और ऊंचा स्थान दिलाने के लिए हमें वचनबद्ध होना होगा।
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।