एक समय था, जब आदमी कहता था कि मारने की फुर्सत नहीं है, आदमी का ये जुमला सुन कर ही लगाता है कि कोरोना आदमी के फुर्सत से मरने की व्यवस्था करने आया है। लॉकडाउन लगवा कर सबको फुर्सत करवा दी और कह रहा है- लो मरो, अब फुर्सत है। पर मारना कोई नहीं चाहता हर आदमी जिंदा रहने के लिए जुगाड़ लगा रहा है। जुगाड़ इसलिए कि मास्क, सेनेटाईजर दोनों हमारे देश में जुगाड़ के चल रहे है। एन-91 का काम हमारे यहॉ घर पर बनी मुंह पट्टी और गमछा कर रहा है। सेनेटाईजर का काम शहरों में सर्फ का पानी और गॉवों में राख कर रही है।
जो दादी रोज ओटले पर बैठ कर मोहल्लें के लोगों को सुनाते हुए कहती थी कि ‘भगवान मुझे उठा ले- भगवान मुझे उठा ले’ वो भी कोरोना के आते ही घर के अंदर घुस गई है। चौवीस घंटे मास्क लगा कर रख रही है। और दिन रात घर के दरवाजे की तरफ देखती रहती है, कोई अपरिचित घर में आए तो देहरी के भीतर नहीं आने देती। हर अंजान उसे मौत का दूत लगता है। किसी को अपनी खटीया के करीब भी नहीं आने देती। सेनेटाइजर की बोतल सिरहाने ही रखती है और दिन में चालीस बार अपने हाथों पर लगाती है। और अब तो ये कहना भी छोड़ चुकी है कि भगवान मुझे उठा ले।
दिन रात काम और पैसे के चक्कर में जो कहते थे कि मारने की फुर्सत नहीं उनसे कहा जाए चलो फुर्सत हो गई अब मर जाओ। तो हो सकता है कि वे आपके पीछे हंटर लेकर दौड़ पड़े। क्योंकि काम सब बंद हो गये और पैसा आना भी बंद है। ऐसे लोग कसम खा लेंगे कि भूल से भी ये नहीं कहेंगे कि मरने की फुर्सत नहीं। फुर्सत नहीं थी तब कोई जहर खाकर मरने की तैयारी करता, कोई फांसी लगाकर लटकने की सोचता, कोई रेल पटरी पर सोने का मन बनाता। लेकिन कोरोना ने आकर जबसे चपेट में लेना शुरु किया है हर कोई मरने के नाम से ही डरने लगा है।
पहले कोई हार्टअटेक से मरता, कोई सांस रुकने से मरता, कोई छाती में गैस चढ़ने से मरता, कोई गंभीर बिमारी से मरता पर अब तो हर मरने वाला अपनी मौत का इल्जाम इस कोरोना पर ही लगा कर जा रहा हैं। एक कोरोना ने सारे कारण खत्म कर दिए। सोचिए व्यस्त और त्रस्त जिंदगी के बीच एक स्वस्थ जिंदगी जीने का तरीका सीखा दिया।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको घर के लोग जिनको कहते थे ‘काम का न काज का दुश्मन अनाज का’ याने असल जिंदगी में इनके पास कोई काम नहीं होता है दिन रात केवल आभासी काम याने टिकटॉक, फेसबुक, और व्हाटसएप के अलावा उनको कुछ सुझता ही नहीं हैं और सोफे और पलंग पर गड्डे जिनकी वजह से पड़ जाते है, जिनको सुबह उठते ही ताने सुनने पड़ते है। और कोई काम घर से बाहर का बताओ तो पड़ोसी के ओटले पर जा कर आधा घंटा विडियो देखने के बाद काम करके घर आते है। वे अब कोरोना के आने के बाद से अपना जीवन अब बहुत शांति से गुजार रहे है।
उनको अब न ताने सुनने पड़ रहे है और न ही कोई घर से बाहर जाने को बोलता है। घर के लोग भी सोचते है पड़ा रहने दो, घर से बाहर गया तो न जाने कहॉ से सामान के साथ कोरोना ले आया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। ये बाहर जाकर वैसे भी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता है, कम से कम घर में रहकर आठ-दस व्हटसएप ग्रुप तो चला रहा है। इसके अंडर में दो –ढाई हजार लोग तो है जो बिना पगार के लोगों को सुचनाएँ भेजते है, और कोरोना के विकट दौर में लोगों का मनोरंजन करते है। ये स्मार्टफोन में घुसकर ही स्मार्ट बन गया तो ही अपने भाग्य संवर जाएंगे। वैसे भी सरकार ‘वर्क फ्रॉम होम’ पर ही तो जोर दे रही है। बाहर जा कर मौत ले आए उससे तो अच्छा ही है कि घर में रहे और काम करे तो साल भर में इसकी लुगाई ला देंगे। बस ये फुर्सत में न रहे। इसे मरने की फुर्सत भी न मिले यही सबकी कामना है।
-संदीप सृजन
उज्जैन (म.प्र.)