मजहब का चाँद

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aarti jain
चाँद को भी आज आ
जाएगा  फिर से रोना,
मजहबी भेद में आज
पृथक पड़ेगा निकलना।
चाँद देख के रोजा खोले,
कोई आपा सकीना।
चाँद से करवा का व्रत,
खोले कोई बहन मीना॥
चाँद को भी एक नभ में
दो रुपों में पड़ेगा जीना,
मीना हो या सकीना तप में
सूरज का तेज पड़ता सहना॥
हर त्योहार है हमारी,
संस्कृति का एक गहना।
फिर क्या जरूरी है दंगों
में रक्त का ऐसे बहना॥
शीतलता बसे चाँद-सी,
क्या बना कोई ऐसा सीना।
क्यूँ एक चाँद को एक नभ
में अलग पड़ता है रहना॥
                                                                             #आरती जैन
परिचय:  आरती जैन राजस्थान राज्य के डूंगरपुर में रहती है। आपने अंग्रेजी साहित्य में एमए और बीएड भी किया हुआ है। लेखन का उद्देश्य सामाजिक बुराई दूर करना है।

matruadmin

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