लघुकथा

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devendr soni

दीपावली का पर्व ज्यों-ज्यों पास आ रहा था,शोभा के चेहरे की आभा अपनी कांति खोती जा रही थी,जिसे वह चाहकर भी छुपा नहीं पाती थी। उसे यह चिंता सता रही थी कि,अगर दीपावली पूजन पर भी सुमित घर नहीं लौटे तो वह आस-पड़ोस से उठती शंकालु निगाहों को क्या जवाब देगी। फिर तो लोगों के मुंह ही खुल जाएंगे और न जाने कितनी बातें होंगी ?
शोभा और सुमित दोनों ही कामकाजी थे और अच्छा-खासा वेतन पाते थे। दोनों की परेशानी अलग-अलग शहरों में पदस्थापना की वजह से उतपन्न शक से उपजी थी। दोनों ही जीवन संध्या के करीब थे,बावजूद इसके जीवन के उत्तरार्द्ध में पनपा यह शक उनके जीवन को कलुषित कर रहा था। सुमित पहले तो रोज आना-जाना करते थे,किंतु लौटते-लौटते रोज ही देर हो जातीl फलतः शोभा को लगता,जरूर सुमित का मन उचट गया है और वह उससे दूर रहने लगे हैं। सुमित के समझाने का कोई फल जब नहीं निकला तो,बढ़ते मतभेद को देखते हुए बदनामी से बचने के लिए दोनों ने अलग-अलग रहने का फैसला ले लिया,पर शक का जो बीज पनप गया था,उसने शोभा की नींद उड़ा रखी थी। सुमित को भी मन मारकर लिए गए अपने निर्णय पर पछतावा होता। जब-तब उसने लौटने का मन भी बनाया,पर रोज-रोज की किच-किच के डर ने उसके भी पांव बांधे रखे,पर त्यौहार…त्यौहार का क्या? त्यौहार तो होते ही हैं आपसी सद्भाव बढ़ाने के लिए। अब निर्णय लेने का वक्त आ रहा था-दीपावली पर एकसाथ पूजा करें या न करें! दोनों को ही बदनामी का डर भी था और साथ रहने की लालसा भी। एक अहम ही था,जो दोनों को संवाद से दूर रख रहा था। पहल कोई नहीं करना चाहता था। लगता था दोनों ने उदास मन से अब फैसला नियति पर टाल दिया था। अंततःवह समय भी आ ही गया,जब किसी-न-किसी को तो पहल करना ही थी।
दीप पर्व की शाम घिर आई थी। शोभा उदास मन से पूजा की तैयारी कर रही थी कि,तभी रंगोली डालते हुए देखती है कि थके कदमों से सुमित घर की ओर पैदल ही चले आ रहे हैं। उनके हाथों में ढेर सारा सामान था। शोभा लपककर सुमित के हाथों से सामान ले लेती है और अश्रुजल से स्वागत करती है। अब उनके मतभेद मिट चुके थे,और थोड़ी देर बाद ही आंगन में दोनों के हाथों लगे खुशियों के दीप झिलमिला रहे थे। लग रहा था मानो मतभेद के तमस को दीप पर्व ने अपने प्रकाश से मिटा दिया था..हमेशा- हमेशा के लिए।

                                                         #देवेन्द्र सोनी

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।