केसरिया कुसुमशोभित वाटिका है यहाँ, वसंत इठलाकर अब तुम चले कहाँ ? वासंती चुनर ओढ़े प्रमिल ऋतु खिली यहाँ, प्रणय के पल संग लिए अब तुम चले कहाँ ? प्रीत की स्वरलहरियों पर गूँजा निनाद करती यहाँ, मधुर रुनझुन गीत नुपुर के लिए अब तुम चले कहाँ ? तनिक ठहरो […]
दरिया बहती… बढ़ती जाती… पल-पल एहसास कराती, नदियों से मिल.. खिल लहरों से, नव सागर एक दीप्त बनाती…। कभी थमना तो,तेज बहते जाना… जीवन का खेल सिखाती मुस्कुरा खुशियों से.. गमों में यूँ गुनगुना, कल..आज-कल… क्या हुआ,अब होगा क्या..? अनुरागी-वैरागी मन… रचती जन्म-जन्मान्तर… जागृत पुण्यों को करती। रागिनी बन दिल […]