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रससुजान रसखान है,मीरा के पद पूर।
सुर-सुरा साहित्य लहरी,ग्रंथ रचे हैं सूर।।
अष्ट छाप वर्णन किए,राधेश्यामा गीत।
गली-गली गावत फिरे,मुरली में संगीत।।
कृष्ण चतुर परमानन्द,गोविंद कुंभनदास।
सूर नंद अरु छीतकवि,अष्टछाप के खास।।
(‘हिन्दी दोहावली’ के इतिहास खंड भक्तिकाल से दोहा)
#डाॅ. दशरथ मसानिया
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