चैत की पावन नौमी अनूप,
लिए सुषमा का नया रंग लोना।
राष्ट्र की संस्कृति ज्योति उदग्र,
सजाये हुये शुभ बीज का बोना।
कल्मष मानवों के मन का,
तन का सब साथ ही आप ही धोना।
जागृति की लिए दीप शिखा,
की सुज्योति से ही तम का खोना।
लोक में है ‘अरविन्द’ प्रसिद्ध,
है सिद्ध धरा जग में छवि शाली।
राम यहीं पर आकर खेल,
गए कर तालियों में निधि आली।
वन्धुओं के संग सात्विकता के,
सुदुर्ग बना गए वैभवशाली।
भू के रहे भगवान प्रणम्य,
नमस्य कला की लिए प्रिय डाली।
मानवता के सरोज का वैभव,
नित्य नया ‘अरविन्द’ सुहाया।
धर्म की दिव्य ध्वजा फहरी,
उसके स्वर का रंग सौम्य सजाया।
पाप की लंका विनष्ट की वानरों,
औ नरों ने तप पुंज दिखाया।
मान के लोहा निशाचरों ने,
चरणों में सदा प्रिय फूल चढ़ाया।
देश को गौरव देकर शौर्य की,
भव्य शलाका जलाई अनोखी।
गौतम,अत्रि,वशिष्ठ से वन्द्य,
रही ‘अरविन्द’ कहीं नहीं शोखी।
पूरा प्रभाव पड़ा जिनपे,
फिर वे न रहे जग में कहीं दोखी।
नाम ने,काम ने,राम ने साथ ही,
भारती की वर नींव है पोखी।
आज उसी विभु के शुचि आगम,
जन्म की पावन है तिथि आई।
लोल तरंग में झूम उठी,
सरयू की मनस्थिति है मन भाई।
अवध प्रदेश का क्या कहना?
नर-नारियों में नई ज्योति समाई।
देश के कोने-औ-कोने से पावन,
पंथी व्रती की छटा छहराई।
#वैकुण्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’
परिचय : वैकुण्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’ मौलिक रूप से गीत,कहानी,छन्द की सभी विधाओं में कविताएँ,लेख माँ वीणा पाणी की कृपा से लिखते हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में इनका प्रकाशन होता रहता है। कुछ समाचार पत्र में आपके व्यंग्य का स्थाई स्तम्भ भी प्रकाशित हो रहा है। आप फैज़ाबाद जिले के तेलियागढ़(उ.प्र.) में रहते हैं।