खूब आग बरसा रही,सूरज की ये ताप, जन-जन झुलसे ताप से,बढ़ता अब संताप। पतझड़ से हैरान हैं,पशु पक्षी भी आज, ताल-तलैए सूख गए,पानी को मोहताज। कपड़े तन पर चुभ रहे,सूती की दरकार, गर्मी की भीषण जलन,करती अत्याचार। सूरज सिर पर चढ़ गया,बिगड़ा क्यूं मिज़ाज़, लाल-पीला वो हुआ,सहमा सकल समाज। कूलर-एसी […]