एक अप्रैल को ही मूर्ख दिवस क्यों मनाते हैं, तीन सौ चौसठ दिन क्या होशियार हो जाते हैं? मुझे तो बचपन से मुर्ख बनाया जा रहा है, चांदी के बदले गिलट का टुकड़ा पकड़ाया जा रहा है। छोटे में माँ से कोई चीज मांगता था,रोता था, माँ बहला देती थी,नहीं.. […]
दिल में कुछ,दबा-सा है, कुछ अटखेलियाँ,कुछ नादानियाँ.. गुज़री बातों की कुछ निशानियाँ, वक्त जैसे कुछ,रुका-सा है.. दिल में कुछ,दबा-सा है…। कुछ ख़्वाहिशें,कुछ आशाएँ, कुछ हैरानियाँ,कुछ परेशानियां.. कोई शूल जैसे,चुभा-सा है, दिल में कुछ,दबा-सा है…। कुछ सपने,कुछ उम्मीदें, कुछ अलसाई-सी वो नींदें.. मन में कुछ,छुपा-सा है, दिल में कुछ,दबा-सा है…। कुछ […]