रससुजान रसखान है,मीरा के पद पूर। सुर-सुरा साहित्य लहरी,ग्रंथ रचे हैं सूर।। अष्ट छाप वर्णन किए,राधेश्यामा गीत। गली-गली गावत फिरे,मुरली में संगीत।। कृष्ण चतुर परमानन्द,गोविंद कुंभनदास। सूर नंद अरु छीतकवि,अष्टछाप के खास।। (‘हिन्दी दोहावली’ के इतिहास खंड भक्तिकाल से दोहा) #डाॅ. दशरथ मसानिया Post Views: 286
आँखों में इंतज़ार छुपाए बैठे हैं, दीदार की ख्वाहिश छुपाए बैठे हैं..। यादों के लम्हें संजोकर, इश्क-ए-इज़हार छुपाए बैठे हैं..। जिक्र में फिक्र शामिल, दिल-ए-बेकरार छुपाए बैठे हैं..। खामोशी के लबों से अपने, वफा-ए-इकरार छुपाए बैठे हैं..। इश्क की राहों से गुज़र, बेवजह तकरार छुपाए बैठे हैं..। नसीबों का खेल […]