चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं

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manoj samariya

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं,

जो बार-बार मचलती है,बार-बार फिसलती है..

जो बार-बार छटपटाती है,जो बार-बार अपना हाथ छुड़ाती है,

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं …..l

एक बार जब मैं निकला था साँसों की तलाश में,

कुछ कर गुजरने की आस में..

फँस गया प्रवंनाओं के जाल में,

खो गया उलझनों के सैलाब में…तब…

तब वह हौले से कहीं छिटक गई

जो लौटकर आई नहीं,शायद राह भटक गई….

चलो उस जिन्दगी को ढूंढनेनिकलते हैंll

वह जो बसा करती थी मेरे साथियों के साथ में,

वह जो रहनुमां थी मेरे हर जज्बात में..

खिलखिला उठती थी जो मेरे संग बात ही बात में,

मुझे व्यस्त देख किसी मुलाकात में.

जो मुझसे विलग हो गई,जो शहर में कहीं खो गई…

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं…।।

संग मेरे रैन भर जगती रही,जो जाने क्या तकती रही,

रात भर रही उनींदी,भोर को फिर सो गई..

बीहड़ के रास्ते से पार जाते काफिले में,

जो कहीं रास्ते में खो गई ….

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं..।।

जब रेत का दरिया इक आया,

पार उससे मैं न पाया..

दूर तलक नजर न आया आदमी का कोई साया,

उस वीराने में,सुनसान में,उस उजाड़ रेगिस्तान में

जो शनै-शनै फिसल गई,बनकर रेत जो  रेत में ढल गई…

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं …।।

बालपन में उसका  साथ था,

मेरे हाथों में उसका हाथ था..

ढेर सारे खेलों में उसका भी एक खेल था,

मेरे हर खेल में उसका भी मेल था

बंद मुठ्ठियों के बावजूद जो फिसल गई,

बचपन के ढलते-ढलते जो ढल गई…

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं…।।

पहले जब कभी वह मुझसे रूठ जाती थी,

थोड़ी-सी मसक्कत के बाद मिल जाया करती थी..

नीम की छाँव में या आम के पेड़ पर,

कभी पनघट या गाँव के पोखर पर..

कभी दिख पड़ती थी माँ के आँचल में दुलार में,

तो कभी नजर आती थी पापा की नसीहत में प्यार में

कभी भाई की सीख में तो कभी बहना के लाड़ में,

कभी-कभी चमक उठती थी वह खेतों की आड़ में..

पर आज उसे सब जगह ढूँढ आया,

मगर उसका ठिकाना कहीं नहीं पाया..

जो दूर मुझसे हो गई,जाने कहाँ खो गई ….

चलो उस जिन्दगी को ढूंढने निकलते हैं…।।

         #मनोज कुमार सामरिया ‘मनु'

परिचय : मनोज कुमार सामरिया  `मनु` का जन्म १९८५ में  लिसाड़िया( सीकर) में हुआ हैl आप जयपुर के मुरलीपुरा में रहते हैंl बीएड के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य ) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) भी किया हुआ हैl करीब सात वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैंl लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी करते हैंl आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं।

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