संस्कृतियाँ मिट रही है,सभ्यताएँ हो रहीं हावी। संसार मिट रहा है,सम्बन्ध भी मिट रहे भावीll अपने अपनों पर,ढा रहे हैं ज़ुल्म। बेटी पर पिता का मंजर,ऐ क्या हो तुमll तुम दशरथ-तुम जनक,हिरण्यकश्यप थे तुम। तुम सरल-तुम सह्रदय,श्राप और पाप तुमll तुम वह होकर भी,पिता हो। मृत्यु श्राप न होकर,तुम भाग्यविधाता […]