संस्कृतियाँ मिट रही है,सभ्यताएँ हो रहीं हावी।
संसार मिट रहा है,सम्बन्ध भी मिट रहे भावीll
अपने अपनों पर,ढा रहे हैं ज़ुल्म।
बेटी पर पिता का मंजर,ऐ क्या हो तुमll
तुम दशरथ-तुम जनक,हिरण्यकश्यप थे तुम।
तुम सरल-तुम सह्रदय,श्राप और पाप तुमll
तुम वह होकर भी,पिता हो।
मृत्यु श्राप न होकर,तुम भाग्यविधाता होll
विधाता होकर भी,विष्णु हो तुम।
हे पिता,पिता हो तो,पिता रहो तुमll
#सुनील कुमार पारीक ‘शनि’
परिचय : सुनील कुमार पारीक का साहित्यिक उपनाम-शनि हैl आपकी जन्मतिथि-१ दिसमबर १९८९ तथा जन्म स्थान-सिकराली (राजस्थान) है। वर्तमान में आपका निवास राजस्थान राज्य के चुरू जिला स्थित गाँव-बम्बू में हैl बी. ए.,बी.एड.,एम.ए.(हिन्दी) तथा एम.एड. शिक्षित श्री पारीक का कार्यक्षेत्र-व्याख्याता (हिन्दी) हैl आपको कविता लिखना अधिक पसंद है। आपके लेखन का उद्देश्य-मातृभाषा का विश्व में प्रसार करना है।
sunilstyam1@gmail.com