एक आदर्श ‘स्वयंसेवक देवपुत्र’ की बिदाई
कृष्णकुमार अष्ठाना (पुत्र स्व. श्री लक्ष्मीनारायणजी अष्ठाना) का जन्म 15 मई 1940 को आगरा जिले के ऊँटगिर ग्राम में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा मुरैना में हुई।
प्रखर प्रज्ञा के धनी श्री अष्ठाना की प्राथमिक, स्नातक शिक्षा शासकीय शिक्षण संस्थाओं में रहते हुये हुई। वहीं से स्वाध्यायी छात्र के रूप में ‘इतिहास’ और ‘राजनीतिक विज्ञान’ से स्नातकोत्तर अध्ययन विभिन्न विश्वविद्यालय से स्वाध्यायी छात्र के रूप में पूर्ण किया। बी.एड. और सहित्यरत्न करने के बाद उनकी शिक्षण अभिरुचियों ने और भी प्रखरता प्राप्त की।
अध्यापक श्री अष्ठाना
शिक्षा की सार्थकता उसके कई गुना प्रदाय में ही है। श्री अष्ठाना को सौभाग्य और मेधा के कारण अत्यन्त अल्पायु में ही शिक्षक का दायित्व वहन करने का अवसर प्राप्त हुआ। स्वाभाविक रूप से प्रतिभावान श्री अष्ठाना शीघ्र ही व्याख्याता बने और उन पर दृष्टि पड़ी कुछ पारखियों की। प्राचार्य के रूप में आचार्य गिरिराज किशोर जी का सान्निध्य जहाँ पारस स्पर्श सा रहा, वहीं अनेक ख्यातनाम शिक्षाशास्त्रियों ने उन्हें प्राचार्य बनाकर जब बरई जैसे दूरस्थ स्थान पर भेजा, तब अपेक्षाएँ तो थीं ही, थोड़ी आशंका भी थी। कारण था विद्यालय तक का पहुँच मार्ग, बस के पहुँच स्थान से पूरे 14 मील का पैदल रास्ता और मध्य में दो नदियाँ जिन्हें नाव या तैरकर ही पार किया जा सकता था। दूसरा कारण था सहयोगी शिक्षकों का प्राचार्य से अधिक आयु का होना। खैर… सब आशंकाएँ निर्मूल सिद्ध हुई और तपकर कुंदन से निकले अध्यापक अष्ठाना। 16 वर्षों का यह अध्यापक अष्ठाना आज भी 30 वर्ष के पत्रकार अष्ठाना पर हावी है।
पत्रकार श्री अष्ठाना
1973 में घटनाक्रम ने तेजी से करवट ली और तत्कालीन सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने अष्ठाना की कार्य दिशा ही बदल दी। व्यक्तियों के पारखी श्रीसुदर्शनजी ने अष्ठाना के अन्दर बैठे श्रेष्ठ लेखक को पहचान लिया और उन्हें दैनिक, ‘स्वदेश’ के संपादक का दायित्व निर्वाह करने के लिए राजी कर लिया। उन्हें मुंबई के एक प्रख्यात संस्थान में पत्रकारिता के मूल मंत्र सीखने को मिले। उन्होंने संपादक और प्रबंध संपादक के रूप में ‘स्वदेश’ को 12 वर्ष में नई ऊँचाईयाँ प्रदान की। इस बीच उन्होंने अनेक सामयिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। प.पू. गुरुजी (मा.स. गोलवलकरजी) के गुरु भाई स्वामी अमूर्तानन्दजी के स्नेहपात्र होने के कारण श्री अष्ठाना को उनके स्मृतिग्रन्थ ‘एक और नन्दादीप’ के सम्पादन का सौभाग्य मिला। मध्यभारत प्रान्त के तात्कालिक प्रान्त प्रचारक मा. शरदजी मेहरोत्रा के तपस्वी जीवन के स्मरण पुष्पों को ‘समिधा’ के रूप में एकत्र करने का सुअवसर भी उन्हें प्राप्त हुआ।
वर्तमान में उनके कुशल मार्गदर्शन का प्रसाद पा रहा है बाल मासिक ‘देवपुत्र’। विगत चार दशकों में देवपुत्र ने तेजी से छलांग लगाते हुए एक लाख की प्रसार संख्या को पार कर लिया है। आज ‘देवपुत्र’ बाल साहित्य के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर चुका है।
मासिक ‘जागृत युगबोध’ भी श्री अष्ठाना के सम्पादकत्व में श्रेष्ठ स्वरूप प्राप्त कर पाठकों का चहेता बना रहा।
श्री अष्ठाना इन्दौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष तथा म.प्र. समाचार पत्र संघ के उपाध्यक्ष, इन्दौर समाचार पत्र संघ के सचिव रह चुके हैं। अ.भा. समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन (ए.आई.एन.ई.सी.) तथा इण्डियन एण्ड ईस्टर्न न्यूज पेपर्स सोसायटी (आई.ई.एन.एस.) के भी सदस्य रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में श्री अष्ठाना
अपने जीवन के प्रारंभिक काल में अध्यापक की भूमिका निर्वाह करने के कारण श्री अष्ठाना की रुचि इसी क्षेत्र में अधिक रही। यही कारण रहा कि बाल मनोविज्ञान के ज्ञाता और शिक्षा जगत के श्रेष्ठ अध्येता के रूप में भी वे शीघ्र ही स्थापित हो गए।
विद्याभारती की प्रांतीय इकाई ‘सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान’ के वे अनेक वर्षों तक सचिव रहे। तत्पश्चात वे विद्याभारती मध्यक्षेत्र अर्थात् मध्यभारत, महाकौशल और छत्तीसगढ़ प्रांत के सचिव रहे। ‘विद्या भारती’ अ.भा. कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। वे माध्यमिक शिक्षा मण्डल म.प्र. के भी अनेक वर्षों तक सदस्य रहे। आपने ‘दयानन्द शिक्षण समिति’ के उपाध्यक्ष का दायित्व निर्वाह किया तथा प्रदेश के प्रतिष्ठाप्राप्त आवासीय विद्यालय ‘शारदा विहार’, भोपाल और सरस्वती विद्यापीठ’, शिवपुरी के मार्गदर्शक रहे हैं। प्रदेश की अनेक शैक्षणिक संस्थाओं के मार्गदर्शक के रूप में भी आपकी भूमिका सराहनीय रही।
मीसा का काला अध्याय और श्री अष्ठाना
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के शर्मनाक पृष्ठों में गिना जाता है ‘मीसा’ का वह काल। श्री अष्ठाना और श्री माणिकचन्दजी वाजपेयी ‘मामाजी’ की धारदार लेखनी तत्कालीन शासन के लिए गले की फाँस बनी हुई थी। उस समय ‘स्वदेश’ ही ऐसा समाचार पत्र था जिसके संचालकों से लेकर मशीन मेन तक जेल में ठूँस दिए गये थे। श्री अष्ठाना को तो मीसा की घोषणा के दूसरे दिन से लेकर आपातकाल हटने की घोषणा होने तक 22 माह से भी अधिक समय जेल में रहना पड़ा। उस समय बन्दीगृह में बिताने वाली यह सर्वाधिक लंबी समयावधि रही। मा. श्री सुदर्शनजी और मामाजी भी इन्दौर जेल में उस समय साथ ही रहे। परिवार और स्वयं के लिए अत्यन्त कठिनाई में गुजरा यह काल अष्ठानाजी ने यह गाते हुए हँसी-हँसी में गुजार दिया-
”कितने ही विघ्र आए,
आपातकाल लाए,
कारा की यातनाएँ ले,
मृत्युदूत आए,
पर हम अडिग रहे माँ,
तेरी ही थी ये करुणा,
सब सह लिया है जननी
तेरी शक्ति के सहारे।”
सामाजिक भूमिका में श्री अष्ठाना
समाज में चलने वाली प्रत्येक सामाजिक गतिविधि से जुडऩे में श्री अष्ठाना कभी संकोच नहीं करते। रोटरी क्लब सेन्ट्रल, इन्दौर के वे मानद सदस्य रहे। रोटरी क्लब अपटान, इन्दौर के भी वे मानद सदस्य रहे। प्रेस क्लब इन्दौर तथा म.प्र. प्रेस क्लब के भी वे मानद सदस्य हैं। नगर पालिका निगम, इन्दौर द्वारा महानगर के वरिष्ठ विचारकों का एक समूह बनाया गया है जिनसे समय-समय पर मार्गदर्शन प्राप्त कर नगर पालिक निगम आपनी योजनाएँ तैयार करती है, इसमेें भी श्री अष्ठाना का विशिष्ट स्थान है।
रा. स्व. संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक के नाते उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। वरिष्ठ स्वयंसेवक होने के कारण वे समान रूप से ‘स्वदेशी जागरण मंच’ ‘अ.भा. विद्यार्थी परिषद्’, ‘विश्वहिन्दू परिषद्’, ‘भा.ज.पा.’, ‘भारतीय मजदूर संघ’, ‘विद्या भारती’, ‘सर्व पंथ समादर मंच’, ‘प्रबुद्ध भारती’, ‘अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद’ सहित अनेक आनुषंगिक संगठनों के माननीय एवं मार्गदर्शक हैं।
लेखक के रूप में श्री अष्ठाना
श्री अष्ठानाजी के पैने सम्पादकीय के माध्यम से उनकी लेखनी से सभी परिचित हैं। इस धारदार लेखनी को हम सबने अनेक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि में पढ़ा। स्वामी अमूर्तानन्द जी के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक ‘एक और नन्दादीप’, स्व. भाऊ साहब भुस्कुटे के जीवनपर आधारित ‘स्मृति’, स्व. शरद जी मेहरोत्रा के जीवन पर आधारित ‘समिधा’ जैसी पुस्तकों का लेखन, सम्पादन अविस्मरणीय रहा। ‘नव दधीचि: गुरु तेगबहादुर’ पुस्तक तो सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में वर्षों तक सहेजी जाएगी। यही कारण है कि उन्हें उ.प्र. हिन्दी संस्थान के बाल साहित्य पर दिए जाने वाले पुरस्कार की चयन समिति में भी रखा गया। आकाशवाणी से भी आपकी वार्ताओं तथा आलेखों का प्रसारण होता रहा।
प्रसिद्धि पराङ्मुख व्यक्तित्व का सम्मान
श्री अष्ठाना के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे बड़ा सा बड़ा कार्य सम्पन्न करके अंतिम पंक्ति में खड़े हो जाते हैं। नेपथ्य में रहकर दिग्दर्शन करने वाला यह व्यक्तित्व पारखियों की दृष्टि से कब तक बचता? उन्हें अब तक मिले सम्मानों पर एक दृष्टि-
- मध्यभारत हिंदी साहित्य सभा, ग्वालियर द्वारा सम्मान (सन् 1996)
- नागरी बाल साहित्य सम्मान, बलिया (सन् 1996)
- भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर द्वारा बनारस में सम्मान (2001)
- अ.भा. नवोदित साहित्यकार परिषद द्वारा सम्मान (2002)
- बाल साहित्य, संस्कृति कला विकास संस्थान, बस्ती द्वारा ‘सम्पादक रत्न’ सम्मान (सन् 2000)
- 1998 का ‘मालवा शिक्षा’ सम्मान।
- भारत राष्ट्र परिषद् इन्दौर- (सन् 2003)
- मध्यभारत हिन्दी साहित्य सभा का शताब्दी वर्ष का बाल साहित्य सम्मान (सन् 2003)
- ‘मनिषिका’ संस्था कलकत्ता द्वारा बाल साहित्य सम्मान (सन् 2003)
- ‘बाल वाटिका’ पत्रिका भीलवाड़ा (राजस्थान) द्वारा सम्मान।
- ‘साहित्य कलश’ इन्दौर द्वारा श्रीकृष्ण सरल सम्मान।
- सूर्योदय सम्मान
- राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान अकोला (चित्तौडग़ढ़)
- हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा श्रेष्ठ सम्मेलन सम्मान। (सन् 2002)
- मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा हिन्दी गौरव अलंकरण (वर्ष 2022) । इन सबके अतिरिक्त कई सम्मानों की एक विशाल सूची है। संक्षेप में यही कहना पर्याप्त होगा कि उनकी साधना के आगे वैसे तो इन सम्मानों का कोई महत्त्व नहीं, परन्तु श्री अष्ठाना से जुड़कर सम्मानों ने सार्थकता प्राप्त की है।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि पुण्यात्मा के श्रीचरणों में।
डॉ विकास दवे
मो. 9425912336