अब खुदा की भी इनायत हो गई है।
प्यार करने की इजाजत हो गई है।
क्यूँ नहीं रखता ये धीरज दिल मेरा भी।
शोखियों को भी शिकायत हो गई है।
चाशनी मे प्रेम की हैं …….डूबते हम।
दूर हमसे अब हिकारत हो गई है।
इक नजर में दे दिया ये दिल किसी को।
यूँ लगे रबकी …इबादत हो गई है।
दिल लगाकर तोड़ देना बाद में फिर.।
ये शरीफों की शराफत हो गई है।
एक दूजे से वफा ही आज करना।
दो दिलों की ये जमानत हो गई है।
जो बसा जी में हमारे …आज.है बस ।
जिन्दगी उसकी अमानत हो गई है।
सुनीता उपाध्याय `असीम`परिचय : सुनीता उपाध्याय का साहित्यिक उपनाम-‘असीम’ है। आपकी जन्मतिथि- ७ जुलाई १९६८ तथा जन्म स्थान-आगरा है। वर्तमान में सिकन्दरा(आगरा-उत्तर प्रदेश) में निवास है। शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत)है। लेखन में विधा-गजल, मुक्तक,कविता,दोहे है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय सुनीता उपाध्याय ‘असीम’ की उपलब्धि-हिन्दी भाषा में विशेषज्ञता है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी का प्रसार करना है।