तुम तो शमा जलती ही रहना।
तम न हरुँ, कभी न कहना।
है रोशन करना तेरा धर्म
तू करती जाना अपना कर्म
पर उपकार में रत रहकर,
सरिता की धारा सी बहना।
तुम तो शमा जलती ही रहना।
तभी तू जग से न्यारी है
लगती सभी को प्यारी है
जलते-जलते ढल जाना
अगन को तुम सीने में सहना।
तुम तो शमा जलती ही रहना।
परवाने कई अटकाने
आते राह से भटकाने
कर्म पथ पर चलो सदा ही
कर्म श्रृंगार, कर्म ही गहना।
तुम तो शमा जलती ही रहना।
जब आंधी तूफान आए
शमा तू उससे भी टकराए
कभी नहीं घबराना तुम,
न ही उसके संग बहकना।
तुम तो शमा जलती ही रहना।
श्रीमती मधु तिवारी, शिक्षिका, रायपुर छत्तीसगढ़, कहानी गीत गजल गजल कविता लेखन मे सक्रिय।