भीड़ से निकल कर
किसी से मैंने पूछा ,
कहाँ जा रहें है हम ?
उसने कहा,
पूछ कर बताता हूँ,
मुझको भी नहीं पता,
हम कहाँ जाते हैं?
मैंने दूसरे से पूछा ,
आखिर हमारी मंजिल कहाँ है?
उसने कहा,
मुझको भी नहीं पता,
मंजिल अपना,
पूछ कर बताता हूँ।
मैंने तीसरे से पूछा,
आखिर क्या पाने की तमन्ना है?
उसने भी कहा,
मुझे नहीं पता,
क्या है तमन्ना अपनी ?
पूछ कर बताता हूँ ।
सबने किसी से पूछ कर
मुझे एक स्वर में बताया,
ये सब मत पूछो,
जो सब करते हैं,
बस वही करते जाना है,
आंख बंद कर लो दोनों ,
‘अंधदौड़ ‘ में ही दौड़ते जाना है ।
नाम-पारस नाथ जायसवालसाहित्यिक उपनाम – सरलपिता-स्व0 श्री चंदेलेमाता -स्व0 श्रीमती सरस्वतीवर्तमान व स्थाई पता-ग्राम – सोहाँसराज्य – उत्तर प्रदेशशिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।