यूँ रहना जहां में है दुश्कर अकेले,
न अर्थी उठे है न छप्पर अकेले।
जो तन्हाइयों से मुहब्बत है कर ली,
है लगता नही अब मुझे डर अकेले।
समां गुफ्तगू का बनाते चलो जी,
जो चलना हो लंबे सफ़र पर अकेले।
हमें करके महनत है कल अपना लिखना,
न कुछ कर सकेगा मुकद्दर अकेले।
लतीफे सुनाकर हँसाता जो सबको,
वो रोता मिला मुझको अक्सर अकेले।
लगी आग तो फिर ये बस्ती जलेगी,
नही है यहाँ पर मेरा घर अकेले।
तुम्हें हो मुबारक ये दुनिया कि महफ़िल,
रहें हम जहां में कलंदर अकेले।
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।