निगाहें खामोश हैं ,,
आहें खामोश हैं ,
खामोश हैं वे रास्ते,
जहाँ से शहीद गुजरे हैं।
घर -द्वार खामोश है ,
गाँव-नगर खामोश है ,
खामोश है वो पत्नी ,
जिसकी माँग में अँगारे दहक रहे हैं ।
खामोश हैं पिता को पुकारते होंठ. ,
खामोश हैं गोदी को पसारती बाहें ,
खामोश है वो बचपन ,
जहाँ हर प्रश्न खामोश. है ।
वृद्ध पिता खामोश है ,
वृद्ध माता खामोश है ,
खामोश हैं बूढ़ी हड्डियाँ ,
जिन्होंने जवान बेटे का गम सहा है ।
खामोश है दिन की रोशनी ,
खामोश है रात का अँधेरा ,
खामोश है वो दीपक ,
जिसका प्रकाश छिन गया है ।
#आशा जाकड़
परिचय: लेखिका आशा जाकड़ शिकोहाबाद से ताल्लुक रखती हैं और कार्यक्षेत्र इन्दौर(म.प्र.)है। बतौर लेखिका आपको प्रादेशिक सरल अलंकरण,माहेश्वरी सम्मान रंजन कलश सहित साहित्य मणि श्री(बालाघाट),कृति कुसुम सम्मान इन्दौर,शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान(उज्जैन),श्री महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान(शिलांग) और साहित्य रत्न सम्मान(जबलपुर)आदि मिले हैं। जन्म१९५१ में शिकोहाबाद (यू.पी.)में हुआ और एमए (समाजशास्त्र,हिन्दी)सहित बीएड भी किया है। 28 वर्ष तक इन्दौर में आपने अध्यापन कराया है। सेवानिवृत्ति के बाद काव्य संग्रह ‘राष्ट्र को नमन’, कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’ और ‘नए पंखों की उड़ान’ आपके नाम है।
बचपन से ही गीत,कविता,नाटक, कहानियां,गजल आदि के लेखन में आप सक्रिय हैं तो,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी से भी पाठ करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।