कुछ देर और ठहरो,
अभी बातें बहुत बाकी हैं।
हवा के इस रुख से परेशान मत हो,
जाना है दूर तलक अभी।
कुछ पल ठहर कर,फिर से सोचो,
तुम्हारी मेहनत ही तुम्हारा मुकद्दर लिखेगी।
इन हाथों की लकीरों पर,
ऐसे वकालत करना अच्छा नहीं।
फेंकोगे आसमान पर पत्थर,
लौटकर जमीन पर ही आना है।
करोगे जब अथक परिश्रम,
मुकद्दर में सारी कामनाओं का
लिख जाना है।
मत बैठना मुकद्दर के सहारे कभी,
लकीरों को बदलते देर नहीं लगती।
करना हर रोज वकालत
नए सिरे से अपने अथक परिश्रम की।
कुछ देर और सोचो,
अभी सारे कार्य बाकी हैं।।
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।