फिर एक बेटे का भाल गया

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shashank sharma1
चौड़ी छाती वालों का,
यूँ एक राजनीतिक साल गया।
मातृभूमि की सेवा में,
फिर एक बेटे का भाल गया॥
वह कोई नहीं तुम्हारा था,
बस माँ की आँखों का तारा था।
पर अपने छोटे बच्चों का,
वह केवल एक सहारा था।
यूँ कई बार लड़ते-लड़ते,
वह मृत्यु को टाल गया।
मातृभूमि की सेवा में,
फिर एक बेटे का भाल गया॥
हुई बहुत अब बुद्धनीति,
कुछ समर करो संग्राम करो।
दस शीश नहीं जो ला सकते,
फिर मुँह का न व्यायाम करो।
भारत माता के चरणों में,
मुण्डों का फिर जयमाल गया।
मातृभूमि की सेवा में,
फिर एक बेटे का भाल गया॥
चौड़ी छाती वालों का,
यूँ एक राजनीतिक साल गया…॥
(शहीद रामावतार सिंह लोधी एवं कैप्टन कुंडु की शहादत पर)

          #शशांक दुबे

परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |

Arpan Jain

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