शिक्षा और चिकित्साः जबानी जमा-ख़र्च

2 0
Read Time6 Minute, 30 Second

हिंदी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक

यदि शिक्षा और चिकित्सा, दोनों सस्ती और सुलभ हों तो देश के करोड़ों लोग रोज़मर्रा की ठगी से तो बचेंगे ही, भारत शीघ्र ही महाशक्ति और महासंपन्न भी बन सकेगा।

वाराणसी में अखिल भारतीय शिक्षा समागम में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली की दो-टूक आलोचना की और देश भर के शिक्षाशास्त्रियों से अनुरोध किया कि वे भारतीय शिक्षा प्रणाली को शोधमूलक बनाएँ ताकि देश का आर्थिक और सामाजिक विकास तीव्र गति से हो सके। जहाँ तक कहने की बात है, प्रधानमंत्री ने ठीक ही बात कही है लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री और पिछले सभी प्रधानमंत्रियों से कोई पूछे कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कौन से आवश्यक और क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं? पिछले 75 साल में भारत में शिक्षा का ढाँचा वही है, जो लगभग 200 साल पहले अंग्रेज़ों ने भारत पर थोप दिया था। उनकी शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ़ जी-हुज़ूर बाबुओं की जमात खड़ी करना था। आज भी वही हो रहा है। हमारे सुशिक्षित नेता लोग उसके साक्षात् ज्वलंत प्रमाण हैं। देश के कितने नेता सिर्फ़ डिग्रीधारी हैं और कितने सचमुच पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी हैं? इसीलिए वे नौकरशाहों की नौकरी करने के लिए मजबूर होते हैं। हमारे नौकरशाह भी अंग्रेज़ की टकसाल के ही सिक्के हैं। वे सेवा नहीं, हुक़ूमत के लिए कुर्सी पकड़ते हैं। यही कारण है कि भारत में औपचारिक लोकतंत्र तो कायम है लेकिन असलियत में औपनिवेशिकता हमारे अंग-प्रत्यंग में रमी हुई है। प्रधानमंत्री गर्व से कह रहे हैं कि उनके राज में अस्पतालों की संख्या 70 प्रतिशत बढ़ गई है लेकिन उनसे कोई पूछे कि इन अस्पतालों की हालत क्या है और इनमें किन लोगों को इलाज की सुविधा है? अंग्रेज़ की बनाई इस चिकित्सा-पद्धति को, यदि वह लाभप्रद है तो स्वीकार ज़रूर किया जाना चाहिए लेकिन कोई यह बताए कि आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपेथी, हकीमी-यूनानी चिकित्सा-पद्धतियों का 75 साल में कितना विकास हुआ है? उनमें अनुसंधान करने और उनकी प्रयोगशालाओं पर सरकार ने कितना ध्यान दिया है? पिछले सौ साल में पश्चिमी एलोपेथी ने अनुसंधान के ज़रिए अपने आपको बहुत आगे बढ़ा लिया है और उनकी तुलना में सारी पारंपरिक चिकित्साएँ फिसड्डी हो गई हैं। यदि हमारी सरकारें शिक्षा और चिकित्सा के अनुसंधान पर ज़्यादा ध्यान दें और इन दोनों बुनियादी कामों को स्वभाषा के माध्यम से संपन्न करें तो अगले कुछ ही वर्षों में भारत दुनिया के उन्नत राष्ट्रों की टक्कर में सीना तानकर खड़ा हो सकता है। यदि शिक्षा और चिकित्सा, दोनों सस्ती और सुलभ हों तो देश के करोड़ों लोग रोज़मर्रा की ठगी से तो बचेंगे ही, भारत शीघ्र ही महाशक्ति और महासंपन्न भी बन सकेगा। दुनिया में जो भी 8-10 राष्ट्र शक्तिशाली और संपन्न माने जाते हैं, यदि बारीकी से आप उनका अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि पिछले 100 वर्षों में ही वे वैसे बने हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा और चिकित्सा पर सबसे ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया है।
08.07.2022

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
संरक्षक, मातृभाषा उन्नयन संस्थान

कौन हैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिंदी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिंदी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।

matruadmin

Next Post

डॉ. जवाहर कर्नावट का शोध कार्य लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स 2023 में शामिल

Wed Apr 12 , 2023
भोपाल। प्रदेश के प्रसिद्ध लेखक एवं वक्ता डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा 27 देशों की 120 वर्षों की हिंदी पत्रकारिता पर किए गए शोध कार्य को लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स 2023 में शामिल किया गया है। वैश्विक स्तर पर हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के इस अनूठे संकलन और सामग्री विश्लेषण के कार्य को […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।