जा रहा हूँ

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ganesh madulkar
मुझे मालूम है कि वो मेरा नहीं है फिर भी,
उसे पाने,नाकाम कोशिश किए जा रहा हूँ।
मुझे पता है उसके बिना जी नहीं सकता,
बेशक उसके बिना भी जिए जा रहा हूँ।
वो मुझे मिलेगी एक दिन मुझे नहीं मालूम,
फिर भी दिल को सब्र बंधाए जा रहा हूँ।
मुझे मालूम हुआ,उसकी बस्ती में अंधेरा है,
उसके घर के बाहर चराग जलाए जा रहा हूँ।
उसकी राहों में कभी भी काँटे न आए,
तभी तो अपना ह्रदय बिछाए जा रहा हूँ।
अभी भी थोड़ी उम्मीद बाकी है कहीं,
तभी तो तुमसे प्रीत लगाए जा रहा हूँ।
अभी तुम मुझमें जिन्दा हो कहीं,
तुम्हारी तस्वीर बनाए जा रहा हूँ।
देखते हैं मेरे हिस्से कितना गम आता है,
बैठकर उसी का हिसाब लगाए जा रहा हूँ।
गर इश्क़  करना गुनाह है तेरी बस्ती में,
तो ले एक गुनाह और किए जा रहा हूँ॥

                                                                     #गणेश मादुलकर

परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।

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