मुद्दा-न्याय में मुद्दे की भाषा का
महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने केरल में विधि क्षेत्र के महानुभावों के बीच में उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में अपील करने वालों की भाषा में फ़ैसला देने की बात कही थी,जो सच्चे अर्थों में न्याय के हित में है। सवाल राष्ट्रपति की भावना साकार से है। इसे साकार करने का रास्ता क्या है ? इसका जवाब विधिवेत्ता भी बता सकते हैं। पिछले सत्तर साल में जिनके हाथों में सत्ता रही है,वहाँ से अपील करने वालों की भाषा में न्याय प्रदान करने की पहल नहीं हुई है। वर्तमान सरकार में बैठे किसी अधिकृत व्यक्ति ने अपना दृष्टिकोण प्रकट नहीं किया है। वे कोई उलझन में हाथ डालकर उसे जलाने की तोहमत लेना नहीं चाहते होंगे। इसे अपने-आप ठण्डा हो जाने में अपनी ख़ैरियत मान रहे होंगे।
राष्ट्रपति की अपनी सीमाएँ रहती हैं। उस सीमा में रहकर उन्होंने करोड़ों लोगों की भाषा में न्याय प्रदान करने की भावना को बल प्रदान कर दिया है। ऐसे जनहित की और राष्ट्रहित की बात कितने राष्ट्रपतियों ने कही है ? जो लोग राष्ट्रपति की भावना से सहमत हैं,उन्हें चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के सांसदों के माध्यम से संसद में मामले को उठाने के लिए सम्पर्क करें,चिट्ठी लिखें। लोकसभा और राज्यसभा की आसंदी तक पत्र पहुँचाना भी एक रास्ता हो सकता है। जैसे व्यापक जनहित के मामले पर न्यायालय स्वत: संज्ञान लेता है। विधि वेत्ताओं से सम्पर्क करके न्यायालयों में भी जनहित के इस मामले पर विचार करने का निवेदन किया जा सकता है।
संगोष्ठियां करके उसमें न्याय और विधि क्षेत्र के विशेषज्ञों के माध्यम से देश और समाज को जागृत किया जाना चाहिए।
हिंदी बचाओ और वैश्विक हिंदी सम्मेलन से जुड़े प्रमुख लोगों के समक्ष कुछ करने का यह अवसर है। इस गंभीर मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय सरसंघ संचालक मोहनराव भागवत का योगदान ऐतिहासिक हो सकता है। उनसे नागपुर के केशव भवन में कुछ लोगों को सम्पर्क करना ही चाहिए। भले ही इसके लिए अपने कामकाज से कुछ दिनों का अवकाश ही लेना पड़े।
(साभार-वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)
#निर्मलकुमार पाटोदी