आओ जीवन सुलझाते हैं…
जब स्वयं में विचलन हो,
ठहराव की आस में उभरी तड़पन हो
मन बेलगाम हो,बस भागता हो,
एक डर अनजाना कम्पन हो
जब खुद को अकेले पाते हैं।
आओ जीवन सुलझाते हैं…॥
आँखों में…
जब जीवन की धुंधली तस्वीर हो,
धुंधला रास्ता,साफ़ दिल की पीर हो
शरीर अपनी जर्जरावस्था को लिए
द्रवीभूत हुआ हृदय लिए आँखों में नीर हो,
जब अकेले में हम खो जाते हैं।
आओं जीवन सुलझाते हैं…॥
जब….
हृदय में फांस लगती है,
गला अवरुद्ध हो जाता है
वो भयानक चीत्कार भी जब,
कोई सुन नहीं पाता है
तुम्हारी अटकी सांसों में लटकता हुआ जीवन,
एक क्षण जिंदगी पाने को दयनीय गुहार लगाता हो
जब अपेक्षाओं के ढेर पर,
फैसले ढेर हो जाते हैं
तब…………….।
आओ जीवन सुलझाते हैं…॥
तुम्हें पहली बार लगेगा कि,
तुम अब समाप्त हुए
जो हादसे नहीं होने थे इस वक्त,
हादसे बेवक्त हुए
मुट्ठी भर आंसूओं की कीमत तो हर कोई लगा देगा,
उन आंसूओं का क्या जो,दिल की कैद में जब्त हुए
जब आँखों में आंसूं पाँव काँप जाते हैं।
तब आओ जीवन सुलझाते हैं॥
समाधान………………
आंसूओं की तह में जाकर उन्हें टटोलना,
दुनिया से की है बातें अब तक
अब स्वयं से बोलना
कुछ ढंक गया है मेरा, उजियारा,हृदय गुहा में
उन अन्धकार पाशों से खुद को है खोलना
जब शून्य में ठहरकर,कुछ देर ठहरना पड़ता है,
तब जाकर कहीं जीवन सुलझता है
प्रेम की भाषा समझना,
प्रेमरस को तरस जाना
अहसासों के मौसम में बन बूँद-बूँद बरस जाना,
सूखे-घृणित हृदय प्रदेशों में,
जर्जर मानसों में
प्रेमरस से सींचकर तू,भाव पुष्पों को महकाना,
जब ध्यान की गहराइयों में, गहरा उतरना पढ़ता है,
तब जाकर कहीं जीवन सुलझता है…।
सहजता और सजगता जीवन की पहचान है
ह्रदय को कर तू निश्छल तेरा यही तो काम है,
बिछा दे भावों को तू,डूबा के खुशियों में
है जीवन सहर तो मौत तेरी शाम है,
पकड़कर हाथ शुभ आचरण का चढ़ना पड़ता है
तब जाकर कहीं जीवन सुलझता है…,
मौत में जब तुझे जीवन दिखाई देगा
छोड़ दुखों के साथ को,खुशियों की बलाई लेगा,
तुझे भीतर मिलेगा सुख का सागर और लहरें आनंद की
तेरा हर कदम ‘तू आनंदित है’ ये गवाही देगा,
प्रतिक्षण आनंद में,सुख में झूमना पड़ता है
तब जाकर कहीं जीवन सुलझता है,
तब जाकर कहीं जीवन सुलझता है॥
#आचार्य नवीन ‘संकल्प’
परिचय:आचार्य नवीन का साहित्यिक उपनाम-संकल्प है। आपकी जन्मतिथि-२१ फरवरी १९८९ और जन्म स्थान-ग्राम-बजीना(जिला-अल्मोड़ा,उत्तराखंड)है। वर्तमान में आप पतंजलि योगपीठ हरिद्वार(उत्तराखंड)में निवासरत हैं। उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार शहर से संबंध रखने वाले आचार्य नवीन की शिक्षा-बीए सहित पीजीडीएमए तथा दर्शन में आचार्य (पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से)है। कार्यक्षेत्र में आप विभिन्न सेवा प्रकल्पों में सेवारत हैं और वर्तमान में योग प्रचारक विभाग का दायित्व निभाने
के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। २०१२ से नौकरी छोड़कर पतंजलि योगपीठ के साथ मिलकर सामाजिक,सांस्कृतिक,आध्यात्मिक क्षेत्र में अहर्निश ही सेवा कर रहे हैं। अगर लेखन की बात की जाए तो कविता, संस्मरण,काव्य-रचना,लेख,कहानी,गीत और शास्त्रीय रचना का सृजन करते हैं। प्रकाशन में उपनिषद-सन्देश( उपनिषदों की काव्यमय रचना) पतंजलि योगपीठ द्वारा प्रकाशित है। आप ब्लॉग पर भी लेखन करते हैं। आपकी खासियत यह है कि,स्वतंत्र और अत्यंत आकस्मिक लेखन करते हैं। उपलब्धि यह है कि,पूज्य स्वामी रामदेव जी द्वारा चैनल के माध्यम से कई बार लेखन की प्रशंसा पा चुके हैं। आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-मात्र विशुद्ध अभिव्यक्ति,सम्पूर्ण रिक्त,व्यक्त होने के भाव से भर जाना,चेतना का लेखन द्वारा ईक्षण करना तथा समय के साथ अपनी चेतना के स्तर पता करते जाना है।
मातृभाषा में मेरी अभिव्यक्ति को स्थान देने के लिए आपका अशेष धन्यवाद!