जिसने न कभी विश्राम किया
स्वेद बहाकर हमे पहचान दिया
दिखाया नही अपना दुलार
पर दिल में छुपा प्यार रहा
हर दर्द को सीने में छुपाये
जमाने के झंझावतों से हमे बचाये
आँखों में गुस्सा पर ह्रदय में अनुराग
ऐसा है मेरे पिता का प्यार
ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया
जमाने में जिसने जीना सिखाया
हसरते अपनी भुलाकर
हमारी ख्वाइशों को पूरा किया
अपने सपनो को हममे जिन्दा देखा
उस पिता को आज पिता बनकर
समझ पाया हूँ
अपनी यादों में वही कठोर सीना ले आया हूँ
जो था तो कठोर पर मुलायम
था मेरे निर्माण के लिए
आज सर झुका है मेरा
उस निर्माता मेरे भगवान के लिए
इस जन्म में तेरा पुत्रबना
हर कर्तव्य को निभाउंगा
संस्कारों से आपके
अपने पुत्रि को सजाऊंगा
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा छत्तीसगढ़