आधुनिकता के इस युग में लोग बढ़-चढ़कर महिला सुरक्षा एंव सशक्तिकरण पर बड़बोली बोलते सुनाई देते हैं,परन्तु क्या बस बोल देने मात्र से ही सोच का निर्माण हो जाता है ? देश के भाग्य विधाताओं और उनकी बिगड़ैल संतानों की सोच को साफ- सुथरा कैसे बनाया जा सकता है,इस पर कोई कदम कौन उठाएगा ? क्या इन मुद्दों पर भी कोई कानून बनाए जाएंगें ???
और कितने कानून बनाए जाने की दरकार है ?,जब ये कानून ही कानून बनाने वालों के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाएं तो,फिर सब रामभरोसे है।
एक महिला क्या दिन ढलने के बाद अपनी इच्छानुसार घर से बाहर कदम नहीं रख सकती ? यदि निकले तो,उसकी जीवन-शैली पर तन्ज़ कसे जाते हैं। अरे भई क्यों ?,क्या महिलाएं किसी अजायबघर का विचित्र जीव हैं ?,जो रास्ते पर निकलें तो लोग आंखें फाड़-फाड़कर घूरने लग जाएं। रात के १२ बजे वह कार्यालय से,समारोह से,कहीं से भी अकेले लौटे तो,पुरूष उनका पीछा करना शुरू कर दें ?
मैं उस हिम्मती महिला वर्णिका कुंडू के साहस को सलाम करती हूँ,कि उस भयावह परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी मनोस्थिति को नियंत्रित रखा,और उन कार सवार बिगड़ैल सपूतों की अमानुषिक सोच को अंजाम देने से,खुद को बचा लिया। वे निडर होकर सामने आईं। एक बार को उनके साहसी हौंसलों ने ,बुरी नीयत रखने वालों को झकझोर अवश्य दिया है। बाकी तो कानून अपने दांव-पेंच,गवाह-सबूत के पचड़ों में खुद ही उलझता- उलझाता कोई भी उचित कारवाई कर पाएगा या नहीं ?,ऐसी विकृत सोच वालों को उचित दंड मिलेगा या नहीं ?,इन सबकी आस करना फिजूल है।
पीछा करने वाला किसी भी दल के नेता का बेटा हो,किसी भी नामी रईसज़ादे का ‘सपूत’ हो,यह उतना अहम नहीं है,अहम ये होना चाहिए कि,ऐसा असामाजिक कृत्य करने वाला बस गुनहगार समझा जाना चाहिए। उसके दंड की उचित सज़ा मिलनी चाहिए। सवाल महिला रात में घर से बाहर क्यों गई,इस पर उठने की बजाय,पुरूषों की ऐसी विकृत सोच पनपाने वाली परवरिश पर उठने चाहिए।
कर्मवती रक्षा की गुहार लगाएगी,और हूँमायूँ राखी के वादे को निभाने दौड़ा आएगा,ऐसी अपेक्षा हमें अब शायद कानून व्यवस्था से रखना छोड़ देना चाहिए।
हे देश की कर्मवतियों!!,स्वयं की रक्षा खुद करना सीखो। आत्मरक्षा के सभी पैंतरे सीखो,अपने अंदर इस तरह के हैवानों से जूझने की आन्तरिक एंव बाह्य शक्ति को पोषित और पल्लवित करो। अब बस यही एकमात्र उपाय है। संबल बनिए,सक्षम बनिए,निडर बनिए,ताकि आपके आत्मविश्वास को देख एक बार को हैवानियत भी खौफ खा जाए।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।