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तेज रेत सी तपती हूँ मै,
एक कतरा पानी का जो मिल जाये।
ये अगन प्यासे दिल की जो बुझ जाये।
हो तुम मेरी जलती हुयी काया के सागर।
इस रेत से जलती हुए बदन को
दो बूँद पिला जाना।
है प्रणय निवेदन की
तुम एक बार तो
मिलने आ जाना।
देख रही हूँ रास्ता कब से
दिल की प्यास बुझा जाना।
सागर की तरह तुम मुझ को
खुद में समा जाना।
नही चाहती हूँ मै कोई
अस्तित्व हो मेरा तेरे बिन।
तुम बन के सागर रेत में मिल जाना।
हो जाएगी जन्मो की तलाश पूरी,
मिट जाएगी प्यास ये पूरी।।
✍संध्याचतुर्वेदीअहमदाबाद, गुजरात
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