जिंदगी

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 pinki paturi
कुछ के लिए ऐशो आराम है जिंदगी,
कुछ के लिए बेनाम, बेकार है जिंदगी।
देखा जाए तो एक समय ही है जिंदगी,
कहीं ठहरी हुई तो कहीं चाल है जिंदगी।
कभी धूप तो,कभी छाँव है जिंदगी,
कभी सच तो कभी ख्वाब है जिंदगी।
कहीं जानी हुई-सी,तो कहीं अनजान है जिंदगी,
कहीं खिली-खिली तो,कहीं परेशां है जिंदगी।
कहीं भरपेट तो कहीं,पेट की आग है जिंदगी,
कहीं खुशनसीब तो,कहीं लाचार है जिंदगी।
किसी की मुस्कुराहट तो,किसी की आँसू है जिंदगी,
किसी की खुशनुमा तो,किसी की बदहवास-सी है जिंदगी।
कहीं बेखौफ तो कहीं,डरावनी है जिंदगी,
कहीं बहार तो,कहीं उजड़ी हुई है जिंदगी।
कहीं रोशन तो, कहीं बुझता चिराग जिंदगी,
कहीं बंधी हुई तो,कहीं आजाद है जिंदगी।
कहीं मोहब्बत का पैगाम तो,कहीं बदहाल है जिंदगी,
किसी-किसी के लिए  बस इन्तजार है जिंदगी।
किसी की भरपूर तो,किसी की आधी-अधूरी है जिंदगी,
हर एक की अपनी कहानी है जिंदगी।
                                                                #पिंकी परुथी  ‘अनामिका’ 
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल  में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।

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