एक जमाने में रांची को पागलों की रांची के नाम से जाना जाता था। शहर में
अगर किसी दुकानदार या ग्राहक के बीच खरीदारी को लेकर विवाद छिड़ जाता तो
वे एक-दूसरे को कहते-तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। कांके में जाकर इलाज
कराओ। रांची का मतलब कांके पागलखाना हुआ करता था। रांची के सबसे बड़े
मनोरोग चिकित्सक डा़ आर बी डेविस हुआ करते थे। जो सप्ताह में कई दिन
कोलकाता में अपनी क्लिनिक में बैठते थे औरं एक दिन कोलकाता से पागलों को
रांची लेकर आया करते थे। तब कहा जाता था कि रांची की रेलवे लाइन कोलकाता
तक इसलिए जाती है कि वहां से पागलों को ढोकर रांची लाया जाये। कोलकाता से
रांची आने वाली ट्रेन जब रांची रेलवे स्टेशन पर सुबह-सुबह पहुंचती थी तब
लोग चिल्लाते थे कि ‘ पगली गाड़ी आ गयी। ‘
सच कहा जाये तो रांची ही वह गंजी खोपड़ी थी जो पूरे देश के दिमाग खराब
लोगों के मस्तिक को ठीक करने में सक्षम थी। यहां का पागलखाना अंग्रेजों
को भी बहुत पसंद था। यहीं कारण है कि यहां अंग्रेज पागलों के अलावा चीन
के कई पागल भी आजादी के बाद तक दिखाई पड़ते थे। अंग्रेज भले ही भारत छोड़कर
चले गये लेकिन पागल अंग्रेजों को कांके में भर्ती कराकर चुपचाप निकल
भागे। अंग्रेजों को रांची इतनी पसंद थी कि मैक्लुस्कीगंज में मिनी
इंग्लैंड बसा ली। यहां तक कि इडियन औरतों के साथ उत्पन्न अपनी संतानों को
भी वे यहां छोड़ गये जिन्हें आज लोग एंग्लों इंडियन के नाम से जानते हैं।
पंडित नेहरू के जमाने में रांची फैशन के लिए भी जानी जाती थी। मेन रोड के
एक कपड़े की दुकान पर लिखा मिलता था ’-नेहरू लीड्स नेशन, रांची लीड्स
फैशन।‘ उसी दौर में मेन रोड के एक दुकानदार के बेटे ने अपने पिता के
खिलाफ दुकान के सामने ही धरना दे दिया था।
एक समय रांची में वह दौर भी आया जब झारखंड आंदोलन के वक्त नारे लगते थे
’-इस पार न उस पार चलो बिहारी गंगा पार।‘ अब तो झारखंड बन गया और रांची
राजधानी भी बन गयी लेकिन कितने बिहारी गंगा पार गये यह तो रांची के लोग
बखूबी जानते हैं। अब तो अधिकांश नारे लगाने वाले रहे नहीं कि वे गंगापार
जाकर देख ले कि कितने बिहारी रांची से वहां लौटे हैं। झारखंड आंदोलन के
दिनों में गंगापार का नारा लगाने वालों को हर गोरी चमड़ी में बिहारी ही
नजर आता था। आंदोलन के दिनों में एक बार मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा
रांची के वेलफेयर सेंटर मैदान में आंदोलनकारियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा-हमलोगों को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा और आगे बढ़ना होगा।
तब वहां जमीन पर बैठे आंदोलनकारी उठ खड़े हुए और आगे बढ़ गये। तब उन्हें
जयपाल सिंह को कहना पड़ा ’ मैं ऐसा करने के लिए नहीं कह रहा हॅूं।‘
रांची का अर्थ ही होता है ’ रंगीली ’। श्रीकृष्ण भक्त कवयित्री मीरा ने
लिखा है-मैं तो गिरधर के रंग राची। इसका मतलब है वह गिरधर के रंग में रच
गयी थी। इसी तरह रांची ने भी किस्म-किस्म के रंग देखे। यहां कल कारखानों
के लिए मशीनें बनाने वाली एचईसी कारखाने की स्थापना की गयी। यहां कि धमन
भट्ठी हमेशा धधकती रही और बड़े-बड़े लोहे को गलाकर मशीनें बनाती रही। तब
लोग रांची को एचईसी के कारण जानते थे। अब रांची भारतीय क्रिकेट संघ के
क्रिकेट सम्राट महेन्द्र सिंह धोनी के नाम से जानी जाती है। धोनी
हेलीकाप्टर शाट की बल्लेबाजी करने के नाम पर और अपनी बालों की स्टाइल के
कारण जाने जाते हैं।
धोनी के रिटायरमेंट की खबर से सबसे ज्यादा वही बिहारी रोये जिन्हें लोग
गंगा पार जाने के लिए कहते थे। पटना की सड़कों पर युवाओं ने जार-बेजार
आंसू बहाये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धोनी को युवाओं के लिए प्रेरणा
श्रोत बताया। धोनी को चिट्ठी लिखकर कहा कि आपमें नये भारत की आत्मा झलकती
है। हालांकि इससे पहले भारत की आत्मा गांवों में बसती थी। यही कारण है कि
धोनी रांची शहर को छोड़कर सिमलिया गांव में जाकर बस गये। वहां फार्म हाउस
बनाया और खेती करते हुए का फोटो भी लोगों के साथ शेयर की।
अब कोई इससे इनकार नहीं कर सकता कि धोनी की आत्मा भी गांवों में बसती है।
क्रिकेट के बाद धोनी कुछ नहीं तो सिमलिया गांव स्थित अपने फार्म हाउस में
खेती तो कर ही सकते हैं।
प्रसिद्ध कथाकार करतार सिंह दुग्गल जब आकाशवाणी रांची के सहायक निदेशक
हुआ करते थे तब उन्हें एक बार कांके पागलखाना जाने का मौका मिला था।
उन्होंने लिखा है कि मैं जब पागलखाने गया तो कुछ पागल मेरे पास आ गये।
उनमें से एक पागल ने कहा-मैं महात्मा गांधी हॅूं। तब वहां खड़े दूसरे पागल
ने कहा तुम्हें किसने कहा कि तुम महात्मा गांधी हो, तो उसने उत्तर दिया
कि मुझे खुद महात्मा गांधी ने कहा है कि मैं महात्मा गांधी हॅूं। तब वहां
खड़े तीसरे पागल ने कहा लेकिन मैंने ऐसा तो नहीं कहा था।
नवेन्दु उन्मेष
रांची(झारखंड)