दर्द से ऊपर निकलना चाहिए

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gopal madhu
दर्द से ऊपर निकलना चाहिए ;
छिपा जो आनन्द लखना चाहिए।
झाँकना सृष्टि में सूक्ष्म चाहिए;
चितेरे बन चित्त से तक जाइए।
सोचना क्यों हमको इतना चाहिए;
हो रहा जो उसको उनका जानिए।
समर्पण कर बस उसे चख जाइए;
प्रकाशों की झलक फिर पा जाइए।
मिला मन को इष्ट के उर दीजिए;
सुर सुने उनके नयन लख लीजिए।
ऋजु हुए दीक्षा कभी ले लीजिए;
साधना कर वाल बन सब सौंपिए !
जन्म से जो साथ है कब दूर जाता;
पूर्व से ही वह रहा हमारा प्रणेता।
हमीं उससे दूर जाते और डरते;
लौटकर हम अन्त में उसको समझते।
शून्य से आए हुए हैं सगुण होकर;
रहे निर्गुण बृहत् के व्यापक सरोवर।
अनन्तित हो ‘मधु’ जब सब छोड़ देते;
गुरु बन परमात्म गोदी बिठा लेते।

                                                                                     #गोपाल बघेल ‘मधु’

परिचय : ५००० से अधिक मौलिक रचनाएँ रच चुके गोपाल बघेल ‘मधु’ सिर्फ हिन्दी ही नहीं,ब्रज,बंगला,उर्दू और अंग्रेजी भाषा में भी लिखते हैं। आप अखिल विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष होने के साथ ही हिन्दी साहित्य सभा से भी जुड़े हुए हैं। आप टोरोंटो (ओंटारियो,कनाडा)में बसे हुए हैं। जुलाई १९४७ में मथुरा(उ.प्र.)में जन्म लेने वाले श्री बघेल एनआईटी (दुर्गापुर,प.बंगाल) से १९७० में यान्त्रिक अभियान्त्रिकी व एआईएमए के साथ ही दिल्ली से १९७८ में प्रबन्ध शास्त्र आदि कर चुके हैं। भारतीय काग़ज़ उद्योग में २७ वर्ष तक अभियंत्रण,प्रबंधन,महाप्रबंधन व व्यापार करने के बाद टोरोंटो में १९९७ से रहते हुए आयात-निर्यात में सक्रिय हैं। लेखनी अधिकतर आध्यात्मिक प्रबन्ध आदि पर चलती है। प्रमुख रचनाओं में-आनन्द अनुभूति, मधुगीति,आनन्द गंगा व आनन्द सुधा आदि विशहै। नारायणी साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)और चेतना साहित्य सभा (लखनऊ)के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं।

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