आज मैने चाँद को जी भर कर देखा…
ना उसे जाने की जल्दी थी,न मुझे कोई काम था…
सुकून भरी रैना में मैं और मेरा नितान्त एकान्त था
हवा भी दिन भर की तपन के बाद शीतल हो चली थी
भागदौड़ भरे दिन और
जलती दोपहरी की आखिरकार शाम तो ढली थी। l
विस्तृत खुले आसमान में बादल का एक क़तरा भी तो नहीं,
जो आकाश की विशालता पर प्रश्न चिन्ह लगा सके..
आकाश शने-शने मोतियों से सजने लगा
दूर कहीं उत्सव का बाजा बजने लगा,
देखकर इसे दादी-नानी की कई बनावटी कहानियाँ याद आने लगी
जैसे इसके मध्य में एक बुढ़िया सूत रात रही है ,
चन्दा मामा अपने लिए ढेर साले खिलौने लाने वाला है
वगैरह-वगैरह…
खैर ये अधूरा सच दिल को बड़ा लुभाने वाला है,
जब अपने बचपन के भोलेपन को सोचता हूँ तो
खुद पर खुद को हँसने से रोक नहीं पाता…
आज भूगोल पढ सब जान गया मामा के बारे में
इसकी सोलह कलाओं के बारे में…
फिर भी इसे बचपन की तरह एकटक निहारना
अच्छा लग रहा है।
सुकून दे रही है इसकी शीतल चन्द्रिका जो
मद्धिम-मद्धिम चारों ओर यत्र-तत्र छितराई है,
कोशिश कर रहा हूँ समझने की कि क्यों इसे
दाग के बावजूद सौन्दर्य का प्रतिमान कहते हैं?
चतुर्थी व्रत के बाद क्यों चंद्रदर्शन जरुरी है?
क्यों रात भर चकोर इसे निरखता रहता है?
देख पा रहा हूँ मैं इसमें एक अद्भुत-सा आकर्षण है
जिससे नजर हट ही नहीं पा रही है
जैसे निगाहें बनी ही इसे निरखने के लिए हो
कुछ तो है जो मुझे मजबूर कर रहा है…
परन्तु मुश्किल है इसे अंतस में उतारना…
मैंने इसकी चाँदनी को भीतर तक खींचा।
आज मेरे और चाँद के बीच कोई नहीं था बाधारूप में
मैं देर रात उससे बातें करता रहा…
बहुत सरल है चाँद को देखना,बातें करना…
पर इसे देखने का अनुभव बहुत विलक्षण है,
मैंने रात भर उस सहज विलक्षणता को देखा
आज मैने चाँद को जी भर कर देखा…।
#मनोज कुमार सामरिया ‘मनु'
परिचय : मनोज कुमार सामरिया `मनु` का जन्म १९८५ में लिसाड़िया( सीकर) में हुआ हैl आप जयपुर के मुरलीपुरा में रहते हैंl बीएड के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य ) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) भी किया हुआ हैl करीब सात वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैंl लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी करते हैंl आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं।