किसकी हिम्मत, जो अंग्रेज़ी को हटाए?

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हिंदी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कई मुद्दे उठाए, जिसमें भाषा का मुद्दा प्रमुख था। राजभाषा हिंदी को लेकर पिछले दिनों दक्षिण में काफ़ी विवाद छिड़ा था। मोदी ने यह तो बिल्कुल ठीक कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए लेकिन मोदी ने यह नहीं बताया कि पिछले 75 साल में बनी सभी सरकारें क्या देश की एक भी भाषा को उसका उचित सम्मान और स्थान दिला सकी हैं! मोदी सहित सभी प्रधानमंत्रियों ने अंग्रेज़ी के आगे अपने घुटने टेक रखे हैं। सभी भाषाओं को अपनी नौकरानी बनाकर अंग्रेज़ी ख़ुद महारानी बनी बैठी है। सरकारें चाहे कांग्रेस की हों, भाजपा की हों, जनता पार्टी की हों, समाजवादी पार्टी की हों, कम्युनिस्ट पार्टी की हों या प्रांतीय पार्टियों की हों, सभी आज तक अंग्रेज़ी की गुलामी करती रही हैं। उन समस्त लोकसभाओं और विधानसभाओं में कानून सदा अंग्रेज़ी में बनते रहे हैं, उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों के फ़ैसले अंग्रेज़ी में होते रहे हैं, मंत्रिमंडल के सभी फ़ैसले अंग्रेज़ी में होते रहे हैं और हमारी उच्च नौकरशाही अंग्रेज़ी की गुलामी में सबसे आगे बनी रहती है। क्या अंग्रेज़ी के बिना कोई ऊँची सरकारी नौकरी किसी को मिल सकती है? जब मेरे मास्को, लंदन और न्यू यॉर्क के सहपाठी पहली बार भारत आते हैं, वे हमारे बाज़ारों के अंग्रेज़ी नामपटों को देखकर और दिल्ली में अंग्रेज़ी के इतने अख़बारों को देखकर दंग रह जाते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी आज़ाद देश में हमने ऐसी सांस्कृतिक गुलामी नहीं देखी। भारत की शिक्षा और चिकित्सा में भी अंग्रेज़ी छाई हुई है। जब अब से लगभग 55-56 साल पहले मैंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो भारत की संसद ठप्प हो गई थी। आखिरकार मेरी विजय हुई। जवाहरलाल नेहरु विवि में सबसे पहली पीएच.डी. लेने वालों में मेरा नाम था लेकिन आज तक भारत के कितने विश्वविद्यालयों में कितनी पीएच.डी. हिंदी माध्यम से हुई हैं? इसी प्रकार कई स्वास्थ्य मंत्रियों ने मुझसे वादा किया कि वे मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरु करवाएँगे लेकिन क्या आज तक वह शुरु हुई? अदालत की कार्रवाई, वकालत और डाॅक्टरी देश में ठगी के सबसे बड़े धंधे इसीलिए बने हुए हैं कि उन्होंने जादू-टोने का रूप ले लिया है। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया ने अंग्रेज़ी की इस गुलामी के दुष्परिणामों को बहुत अच्छी तरह रेखांकित किया था। गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय और अटलजी तथा मुलायमसिंह, राजनारायण और मधु लिमये ने इस अभियान को जमकर चलाया था लेकिन आजकल के सभी नेता और सभी दल वोट और नोट के खेल में मदमस्त हो रहे हैं या भाषाई मुद्दे पर उनकी समझ इतनी सतही है कि इस मर्ज़ का असली इलाज उनकी अक्ल के परे है। उनके लिए मेरा एक ही मंत्र है- अंग्रेज़ी को मिटाओ मत लेकिन अंग्रेज़ी को हटाओ। अगर आप उसे हटा सके तो हिंदी एवं समस्त भारतीय भाषाएँ तो अपने आप सम्मान पा जाएँगी।
21.05.2022

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
संरक्षक, मातृभाषा उन्नयन संस्थान

कौन हैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिंदी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिंदी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।

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