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खुशी अगर बाजार में बिकती,
वो भी अमीरों की तिजोरी में बंद होती।
न किसी गरीब को खुश रहने का अधिकार होता,न ही किसी अनाथ को।
खुशी को भी धनवान लोग,
अपने इशारे पर नचाते,
और जब चाहे,जहाँ चाहे बुलाते।
अमीर लोग कहकहों पर कहकहे लगाते,
और गरीब मुस्कराने को भी तरसा करते।
अच्छा हुआ,जो ईश्वर ने कुछ चीजों का संतुलन अपने हाथों में रखा,
तभी तो गरीब,अनाथ ने भी तो खुशियों का स्वाद चखा॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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