पर्यटन विकास से खुलेंगे रोजगार के द्वार

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हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने भरपूर प्राकृतिक सुन्दरता,स्वच्छ जल,जंगल,पहाड़,नदियों और स्वच्छ परिवेश से नवाजा है। यहां वर्ष पर्यन्त किसी-न-किसी क्षेत्र में मेलों का आयोजन भी होता रहता है। यहां के २ हजार से ज्यादा प्रमुख देवस्थलों पर लोग अपनी आस्था के पुष्प अर्पित करते हैं। यहां के मेलों में कुल्लू का दशहरा,रामपुर का लवी,चम्बा का मिंजर,सुजानपुर की होली,बैजनाथ तथा मंडी का शिवरात्रि महोत्सव,लाहुल का हाल्दा पर्व,स्पीति घाटी में देचांग और फाग्ली,भागा घाटी का गोच्ची उत्सव,ऊना में बाबा बड़भाग सिंह मेला और बौद्ध अनुयायियों का लोसर पर्व विश्व प्रसिद्ध है ही,वहीं रेड-डी-हिमालया,माउंटेन बाइकिंग,रिवर राफ़्टिंग और बिलिंग में पैराग्लाइडिंग जैसे साहसिक खेल पर्यटन से यहां के युवाओं को स्थाई रोजगार के विकल्प भी मिले हैं। होटल तथा होम स्टे द्वारा भी आतिथ्य सत्कार की दर में वर्ष-दर-वर्ष बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है,लेकिन अभी भी वैश्विक पर्यटन परिदृश्य की तुलना में भारत और हिमाचल प्रदेश को कई सुधारात्मक कार्यों को सिरे चढ़ाने की जरुरत है। इससे न केवल पर्यटकों की आमद में बढ़ोतरी होगी,बल्कि हमारे युवाओं के लिए इस क्षेत्र में रोजगार के द्वार भी खुलेंगे और राज्य की आर्थिकी को भी सहारा मिलेगा। हिमाचल प्रदेश को पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्योँ के लिए कई संस्थाओं द्वारा अनेक पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। इसमें २०१५-१६ की अवधि के लिए नेशनल गोल्ड ई-गवर्नेंस अवार्ड, की अवधि में ही बेस्ट इंडियन डेस्टिनेशन फार एडवेंचर अवार्ड और सीएनबीसी द्वारा बेस्ट माउंटेन एंड हिल डेस्टिनेशन अवार्ड भी शामिल है। राज्य में जनवरी से दिसम्बर २०१६ की अवधि में कुल १.७९ करोड़ ९७ हजार ७५० घरेलू पर्यटकों और ४.५२ लाख ७७७ विदेशी सैलानियों ने सैर की,वहीं भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो जनवरी से जुलाई २०१७ के बीच कुल ५६.७४ लाख विदेशी पर्यटकों की आमद रहीl यह गत वर्ष इसी अवधि की तुलना में १५.७ फीसदी ज्यादा है। वर्ष २०१६ के ११ महीनों में कुल ७९ लाख विदेशी सैलानियों ने भारत की सैर की,और इससे भारत को १.३९ लाख करोड़ रुपयों की कमाई हुई। विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार वर्ष २००७ में कुल अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक प्राप्तियां ८५६ अरब डालर की थीं और इसमें भी मिश्र,फिजी और थाईलेंड जैसे राष्ट्रों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी थी। आप यहां गौर फरमाएं तो पाएंगे कि,प्राचीन भारतीय नाम वाले श्यामदेश-थाईलेंड जैसे मात्र ७ करोड़ की जनसँख्या वाले देश में ही प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक सैर-सपाटे के लिए पहुँचते हैं। वहां की सरकार द्वारा पिछले तीन दशकों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा से यह उपलब्धि हासिल की गई है। विश्व पर्यटन संगठन के आंकड़ों के अनुसार २०१६ में १.२३५ बिलियन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों ने विश्वव्यापी सैर की,जिसमें सर्वाधिक ८२.६ मिलियन पर्यटकों ने फ्रांस की सैर की थी। फ़िर क्रमशः अमेरिका,स्पेन,चीन,इटली,ब्रिटेन,जर्मनी,मेक्सिको,थाईलेंड और दसवें स्थान पर तुर्की में पर्यटक पहुँचे। एशिया में पर्यटक आवाजाही के मामले में भारत ८वें स्थान पर है। चीन पहले और थाईलेंड दूसरे स्थान पर है।इतना ही नहीं,थाईलेंड जैसे छोटे से द्वीपीय देश ने २०१६ में पर्यटन द्वारा ४९.९ बिलियन डालर की कमाई की,जबकि इसी अवधि में भारत की आय मात्र २२.४ बिलियन डालर थी। हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने २००५ में ईको पर्यटन नीति तैयार की थी। इसका मकसद प्रदेश में ऐसा माहौल तैयार करना था,ताकि प्रकृति के सानिध्य का पर्यटक भरपूर आनंद भी उठाएं और यहाँ के सांस्कृतिक एवँ प्राकृतिक परिवेश को भी कम-से-कम नुकसान पहुँचे। इसी उद्देश्य से १६ ईको सर्किट्स प्रोजेक्ट्स की रुपरेखा तैयार भी की गई थी,ताकि ग्रामीण एवँ दूरदराज के इलाकों के नागरिकों के लिए इसके जरिए रोजगार एवँ स्वरोजगार के साथन जुटाए जा सकें। इस योजना के तहत विदेशी सैलानियों के साथ-साथ विद्यार्थियों को भी जोड़ने और ट्रेकिंग रूट तैयार करना था। इसके अलावा प्रदूषण पर नियंत्रण तथा नशा विरोधी अभियान को भी इससे जोड़ने की योजना थी। हिमाचल के नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर दुर्गम क्षेत्रों में घरेलू तथा विदेशी सैलानियों को पहुंचाने की योजना वाले इस प्रोजेक्ट से हिमाचल में पर्यटन को गति मिल सकती है,यदि इस योजना को सिरे चढ़Iया जाए। हाल ही में हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान(शिमला)द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में `संरक्षित क्षेत्रों के आसपास रहने वाले सीमांत समुदायों के लिए आजीविका विकल्प के विकास की दिशा में एकीकृत दृष्टिकोण` विषय पर कार्यशाला में ईको टूरिज्म और होम स्टे योजनाओं को अपनी समग्रता में लागू किए जाने की वकालत की गई, ताकि यहां के स्थानीय निवासियों को भी रोजगार उपलब्ध हो सकें और पर्यटकों को भी रहने-ठहरने की सुंदर व्यवस्थित सुविधाएँ मिल सकें।वर्तमान समय में तकनीक,सड़क तथा परिवहन ढाँचे में विकास,कम लागत वाली एयरलाईनों,अधिक मात्रा में हवाई अड्डों का निर्माण इत्यादि की उपलब्धता बढ़ाने की जरुरत है। अब लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन आ रहा है और अंतरजाल की सुलभता से सूचना एवं जानकारी में बढ़ोतरी के अलावा सस्ते यात्रा पैकेज के कारण भी पर्यटकों की तादात में वृद्धि दर्ज की गई है। लिहाजा, भारत एवं हिमाचल प्रदेश में ज्यादा-से-ज्यादा घूमने योग्य स्थलों की पहचान करके तथा उन्हें उन्नत बनाकर और वहां रहने-खाने की सुंदर सुविधाएँ प्रदान करना आवश्यक हो गया है। अब तो सामान्यतःघूमने- फिरने के अलावा पर्यटन में भी नए क्षेत्रों को जोड़ा गया है। चिकित्सा पर्यटन,शैक्षिक, साहित्य,निर्माणात्मक,साहसिक, योग तथा एकाग्रता शिविर आदि क्षेत्र भी पर्यटन के दायरे में आ गए हैं। और तो और,युध्दभूमि क्षेत्र,नरसंहार वाले स्थल और आतंकवादी घटनाओं के गवाह रहे स्थल भी कला पर्यटन के नाम पर्यटकों को अपने यहां आकर्षित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आज़ ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा देने की जरुरत है। भारत के लगभग ६लाख गांवों में ७४ प्रतिशत आबादी रहती है,वहां की सुध लेना भी जरूरी है। भारतीय जीडीपी में पर्यटन का योगदान ९.६ फीसदी है और यहां ६.७० करोड़ लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन उद्योग से आजीविका कमा रहे हैं,लेकिन वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म कौंसिल का कहना है कि,पर्यटन क्षेत्र में कौशल के अभाव के चलते १२ लाख नौकरियां दांव पर भी लगी हुई हैं। इसलिए,आतिथ्य सत्कार से जुड़े गुणवतायुक्त पाठयक्रमों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना अनिवार्य हो गया है। आज़ पर्यटकों को सुविधाओं से सुसज्जित आवास,गुणवत्तायुक्त भोजन के अलावा सैर-सपाटे के लिए साफ-सुथरी गाड़ियों को उपलब्ध करवाना समय की माँग है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास विभाग ने इन दिनों प्रदेश के ५३ होटलों में बुकिंग पर २०-४० प्रतिशत छूट की घोषणा की है,जो स्वागत योग्य पहल है। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि,अधिक पर्यटकों वाली जगहों पर अमृतसर में सारागढ़ी सराय की तर्ज़ पर पार्किंगयुक्त बहुमंजिला आवासीय इकाईयों का निर्माण करवाया जाए तथा तकनीक के उचित इस्तेमाल से आनलाईन बुकिंग की व्यवस्था की जाए। हमें ध्यान रखना होगा कि,पर्यटकों को बेहतर सड़क,संचार,सुरक्षा तथा आधुनिक सुविधाओं के दम पर ही अपने यहां आने के लिए हम राजी कर सकते हैं।

#अनुज कुमार आचार्य 
परिचय : अनुज कुमार आचार्य की जन्मतिथि २५ जुलाई १९६४ और जन्मस्थान-बैजनाथ है। वर्तमान में आप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की तहसील बैजनाथ के गाँव-नागण में रहते हैं। शहर-पपरोला से ताल्लुक रखने वाले श्री आचार्य की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी )बी.एड. और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा है। बतौर कार्यक्षेत्र आप भूतपूर्व सैनिक हैं और स्वतंत्र लेखन-अध्यापन करते हैं। सामाजिक क्षेत्र की बात की जाए तो स्वच्छता-जागरुकता अभियान और युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं। कई समाचार पत्रों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नियमित लेखन में सक्रिय हैं। सम्मान के रूप में आपको थल सेनाध्यक्ष से प्रशंसा-पत्र और श्रेष्ठ लेखन हेतु प्रतिष्ठित हिमाचल केसरी अवार्ड हासिल हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-सामाजिक विकृतियों,भ्रष्टाचार तथा असमानता के विरुध्द जागरूकता पैदा करना है। 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।