मेरे सामने की दीवार पर एक पुराना-सा चित्र टंगा हुआ है… जिसमें प्रकृति के नज़ारे हैं,
और एक नदी बहती-सी प्रतीत होती है…
वहीँ पास में कुछ घर भी दिखाई देते हैं,
और वे भी मुस्कुरा रहे हैं…
सब कुछ देखने पर मुस्कुराता ही नज़र आता है,
पर कोई है जो मेरी आँखों में खटक रहा है…
एक चेहरा है जो इन हसीं वादियों के बीच भी खुश नहीं है…
खुश क्यों नहीं है,ये तो पता नहीं,
पर उसकी मासूम आँखों में इंतज़ार नज़र आता है…
इंतज़ार शायद किसी अपने का,
इंतज़ार शायद किसी अनछुए सपने का….
इंतज़ार शायद उसका हो,
जो दूर होकर भी दूर नहीं है…
इंतज़ार उसका भी हो सकता है,
जो हर वक्त सांसों में रहता है…
पता नहीं,उसका इंतज़ार कब ख़त्म होगा,
और कब उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आएगी…
इंतज़ार तो मुझे भी है…पर,
मेरा इंतज़ार उसके इंतज़ार के बाद ही ख़त्म होगा…
क्योंकि,मुझे इंतज़ार है उसकी मुस्कुराहट देखने का…
बस देख रहा हूँ कि,मेरा इंतज़ार कब मुक़म्मल होगा…l
#प्रभात पंचोली
परिचय : प्रभात पंचोली अग्रणी जनसंचार संस्थान में सृजनात्मक लेखक हैं। आप कविता,ग़ज़ल और कहानियां ही नहीं लिखते,बल्कि व्यंगात्मक साहित्य लिखने में भी ज्यादा रूचि रखते हैं।
शानदार…..मुक़म्मल की घडी आ गयी।