अंदर ही अंदर घुटता है,
पर ख्यासे पूरा करता है।
दिखता ऊपर से कठोर।
पर अंदर नरम दिल होता है।
ऐसा एक पिता हो सकता है।।
कितना वो संघर्ष है करता
पर उफ किसी से नही करता।
लड़ता है खुद जंग हमेशा।
पर शामिल किसी को नही करता।
जीत पर खुश सबको करता है।
पर हार किसी से शेयर न करता।
ऐसा ही इंसान हमारा पिता होता है।।
खुद रहे दुखी पर,
घरवालों को खुश रखता है।
छोटी बड़ी हर ख्यासे,
घरवालों की पूरी करता है।
फिर भी वो बीबी बच्चो की,
सदैव बाते सुनता है।
कभी रुठ जाते मां बाप,
कभी रुठ जाती है पत्नी।
दोनों के बीच मे बिना,
वजह वो पिसता है।
इतना सहन शील,
पिता ही हो सकते है।।
मेरी रचना मेरे पिता को समर्पित है। सभी पठाको को पिता दिवस की बधाई और शुभ कमानाएँ।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन “बीना” मुम्बई