लोकतंत्र के नाम पर
पूंजीवाद के मकड़जाल में फंसता आदमी ।
असुरक्षित सत्ता से
सुरक्षा की गुहार लगाता आम आदमी ।
भावनाहीन, तर्कहीन चाटुकार प्रशासन से
अपनी सुविधाओं की भीख मांगता आदमी ।
राष्ट्रवाद के नाम पर अपने ही सैनिकों के खून पर
फिर से सत्ता सुंदरी को पाते हैं हमारे जनप्रतिनिधि ।
टैक्स पर टैक्स देते महंगाई की मार सहकर
मुंह पर मास्क लगाकर कठपुतली सा बनता आदमी ।
श्री जी के पाखंडी अनुयायियों को
परिश्रम से अर्जित मुद्रा कोसमर्पित कर
अपनी बहन बेटियों की इज्ज़त को
लुटता हुआ देखता आदमी ।
अपनी बेखौफ निडर आवाज को बड़े- बड़े मीडिया हाउस की संस्कृति में अपनी जमीर को बेचता नारद मुनि ।
नित प्रतिदिन अपनों की लाशों पर विलाप करता
चिकित्सक रूपी कलयुगी भगवानों से
लुटता/मरता बीमार आदमी ।
पेट काटकर अपने बच्चों की पढ़ाई पर मोटी रकम देकर
अपनी दरिद्रता को खत्म करने के नाम पर
डिग्री रूपी कागज़ का टुकड़ा लेकर
नौकरी की तलाश में लुटता युवा भारतीय।
स्मिता जैन