वो ग़रज़परस्ती आदमी मुझे ऐसा छोड़ गया,
जैसे कोई शराबी खाली बोतल छोड़ जाता है।
जैसे मधुमक्खी रस खींच फूल को छोड़ जाती है,
जैसे पत्तियां शज़र का साथ छोड़ जाती है।
जैसे वीणा ने राग का साथ छोड़ दिया है,
जैसे सुई ने धागे का साथ छोड़ दिया है।
जैसे चाँद ने सितारों का साथ छोड़ दिया है,
जैसे सूरज ने किरणों का साथ छोड़ दिया है।
जैसे पतंग ने डोर का साथ छोड़ दिया है।
जैसे नदी ने किनारों का साथ छोड़ दिया है।
जैसे सागर ने लहरों का साथ छोड़ दिया है,
जैसे आँखों ने सपनों का साथ छोड़ दिया है।
जैसे पंख ने परिन्दे का साथ छोड़ दिया है,
जैसे सांसों ने शरीर का साथ छोड़ दिया है।
वो ऐसे बिछड़ा मुझसे,
जैसे आज्ञाकारी बेटे ने माँ बाँप का साथ छोड़ दिया है।
परिचय : होकमदेव राजपूत राजगढ़ जिले के ग्राम सुकली(तहसील नरसिंहगढ़) में निवास करते हैं।
bahut sundar kavita hame aapke dwara padne ko milti hai bahut dhanyawad
congratulation
Bahut bariya…….