देते है हम संदेश सबको
सदा ही सत्य अहिंसा का।
पर खुद कितना इस पर
हम लोग अमल करते है।
साथ ही कितने स्वर्थी है
हम इस कलयुग में।
जो अपनी ही बाते
कहते रहते है इस युग में।
और कहते है खुद जियो
औरो को भी जीने दो।।
पर कितना फर्क है इसे
अपने जीवन में अपनाना।
और गर्व से हम कहते है की
हम अहिंसा के पूजारी है।
मन वचन काया से हम
सभी को माफ करते है।
परंतु कहनी और करनी में
बहुत ही ज्यादा अंतर है।।
करे नित्य पूजा पाठ मंदिर
मस्जिद और गुरुद्वारो में।
करे पाठ नित्य दिन
अपने अपने ग्रंथो का।
नियम धर्म का भी हम
करे नित्य दिन पलान।
पर खुद के क्रोध पर
नहीं रख पाते नियंत्रण।।
कहने को तो इंसान है हम
नहीं करते हिंसा किसी के संग।
दिखाने को कितना कुछ
बड़े-2 मंचों से घोषणाएं करते।
पर अमल खुद कितन %
इंसान आज के करते।
मानव रूप में जन्म लेने से
कोई मानव नहीं होता।
उसका निश्चय और व्यवहार
मानव जैसा होना जरूरी है।
तभी वो मानव कहलाया जाता है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)